राजस्थान सरकार ने ट्रांसजेंडर को OBC श्रेणी में रखने के फैसले का हाईकोर्ट में किया बचाव, कहा - आरक्षण नीति कार्यपालिका का विषय

Update: 2025-10-13 08:37 GMT

राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने हाई कोर्ट में अपने उस सर्कुलर का बचाव किया, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया, बजाय इसके कि उन्हें क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) दिया जाए।

जनवरी, 2023 के इस सर्कुलर को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में सरकार ने कहा कि नीति-निर्माण का क्षेत्र, जिसमें आरक्षण नीति भी शामिल है। इसकी सीमा तथा संरचना कार्यपालिका और विधायी क्षमता का विषय है।

सरकार ने तर्क दिया कि वैधानिक ढांचे का उल्लंघन करते हुए कोर्ट द्वारा आरक्षण का कोई नया वर्ग नहीं बनाया जा सकता।

सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता किसी ठोस या सांख्यिकीय सामग्री से यह साबित करने में विफल रहा है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक अलग क्षैतिज आरक्षण प्रदान करना उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व के संदर्भ में वास्तव में फायदेमंद होगा। सरकार के अनुसार किसी अनुभवात्मक औचित्य के बिना ऐसे नीतिगत मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।

याचिका में तर्क दिया गया कि सरकारी सर्कुलर नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (NALSA मामला) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है। उस फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को क्षैतिज आरक्षण और विशेष उपचार प्रदान करने का निर्देश दिया गया।

याचिका में कहा गया कि सर्कुलर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के रूप में अद्वितीय स्थिति को ध्यान में रखने में विफल रहा, जिससे ट्रांसजेंडर-विशिष्ट और ओबीसी-संबंधी दोनों लाभों से उनका बहिष्कार हो सकता है और असमानता बनी रह सकती है।

इसके विपरीत राज्य सरकार ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन का फैसला सुप्रीम कोर्ट को स्वयं करना है, क्योंकि इस संबंध में अवमानना याचिकाएं पहले से ही लंबित हैं। इसलिए याचिकाकर्ता के लिए हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क देना उचित नहीं है कि राज्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करने में विफल रहा है।

इस मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होनी है।

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