राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: चैरिटेबल ट्रस्ट की 700 दिन की देरी माफ, कोर्ट बोला- कोई दुर्भावना नहीं थी
राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट की ऑडिट रिपोर्ट दाख़िल करने में हुई 700 दिन की देरी को माफ कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब संस्था समाजोपयोगी चैरिटेबल गतिविधियां कर रही है। इसके अलावा, देरी में कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं है तो केवल समयसीमा की तकनीकी अड़चन के कारण कर छूट का लाभ नहीं रोका जा सकता।
जस्टिस के.आर. श्रीराम और जस्टिस संदीप तनेजा की खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आयकर कानून ने विलंब को माफ करने के लिए व्यापक विवेकाधिकार दिया है। ऐसे मामलों में संतुलित व न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
यह मामला मानव सेवा समिति से जुड़ा है, जिसके अध्यक्ष को गंभीर ब्रेन स्ट्रोक आया था। इस कारण पूरी लेखा प्रक्रिया प्रभावित हुई और आकलन वर्ष 2018-19 के लिए फॉर्म 10-बी 700 दिन की देरी से अपलोड किया जा सका।
ट्रस्ट की ओर से धारा 119 के तहत विलंब माफी की अर्जी दी गई, जिसे आयकर विभाग ने यह कहकर खारिज कर दिया कि अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी बनती थी। विभाग ने इसे वैध कारण नहीं माना।
कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि ट्रस्ट न तो लापरवाह है और न ही उसकी कोई गलत मंशा थी।
आदेश में कहा गया,
“ऐसे मामलों में दृष्टिकोण न्यायसंगत और व्यावहारिक होना चाहिए। हम नहीं समझते कि कोई भी संस्था, जिसे वैध रूप से छूट मिल सकती है, क्यों जानबूझकर दस्तावेज़ दाख़िल करने में देर करेगी।”
इस आधार पर हाईकोर्ट ने विभाग का आदेश रद्द करते हुए ट्रस्ट की याचिका स्वीकार की और पूरी देरी माफ कर दी।
केस टाइटल: मानव सेवा समिति बनाम प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त