[राजस्थान पुलिस सेवा नियम] वरिष्ठता-सह-योग्यता मानदंड, वहां निंदा दंड पदोन्नति में बाधा नहीं बन सकता: हाईकोर्ट

Update: 2024-11-18 07:20 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की कि जहां पद के लिए चयन मानदंड केवल योग्यता पर आधारित नहीं है बल्कि इसमें वरिष्ठता का भी एक घटक है, वहां निंदा दंड पदोन्नति में बाधा नहीं है।

जस्टिस फरजंद अली की पीठ सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार को 2015-16 की रिक्ति के बजाय 2008-09 की रिक्ति के विरुद्ध पुलिस अधीक्षक के पद पर उनकी पदोन्नति पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई।

याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसे 2005 में पदोन्नति की पेशकश की गई, जिसे उसने कुछ व्यक्तिगत कारणों से अस्वीकार कर दिया था।

इस अस्वीकृति के कारण राजस्थान पुलिस सेवा नियमों के आधार पर उन्हें दो बाद के भर्ती वर्षों यानी 2003-04 और 2007-08 के लिए पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया गया।

इसके बाद जब वे इस तरह के विचार के हकदार हो गए तो उन्हें एक विभागीय कार्यवाही का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 2009 में निंदा का दंड लगाया गया। इसके बाद उन्हें एक और विभागीय कार्यवाही का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप तीन वार्षिक ग्रेड वेतन वृद्धि को रोकने का दंड मिला। विभागीय कार्यवाही के लंबित होने के कारण उन्हें 2008-09 और 2014-15 में पदोन्नति नहीं दी गई।

उन्होंने दूसरी विभागीय कार्यवाही के आदेश को चुनौती दी, जिसमें दंड खारिज कर दिया गया था। इसके बाद याचिकाकर्ता रिटायर हो गया और रिटायरमेंट के बाद उसे वर्ष 2015-16 में रिक्ति के विरुद्ध पदोन्नति दी गई। इसी आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता का मामला है कि चूंकि तीन वार्षिक ग्रेड वेतन वृद्धि रोकने का दंड न्यायालय द्वारा अलग रखा गया। निंदा का दंड उसके मामले में पदोन्नति के आड़े नहीं आएगा। इसलिए वह वर्ष 2015-16 के बजाय भर्ती वर्ष 2008-09 की रिक्ति के विरुद्ध पदोन्नति का हकदार था।

वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को हकदार वर्ष के लिए पदोन्नति से वंचित करने का राज्य का कृत्य पूरी तरह से अन्यायपूर्ण, मनमाना और अवैधानिक था।

वकील ने प्रस्तुत किया कि निंदा का दंड पदोन्नति के आड़े नहीं आता है, जहां पद भरने का मानदंड वरिष्ठता या वरिष्ठता सह योग्यता था। चूंकि पदोन्नति का विषय पद वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर भरा जाना था, याचिकाकर्ता भर्ती वर्ष 2008-09 के लिए पदोन्नति का हकदार था।

वकीलों को सुनने के बाद न्यायालय ने मामले का अवलोकन किया राजस्थान राज्य और अन्य जिसमें यह माना गया,

भले ही कोई छोटा-मोटा दंड या यहां-वहां कुछ छोटी-मोटी प्रतिकूल टिप्पणी हो अपीलकर्ता को पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस मामले में पदोन्नति के मानदंड पूरी तरह से योग्यता आधारित नहीं थे बल्कि वरिष्ठता-सह-योग्यता पर आधारित थे, जहां वरिष्ठता को योग्यता की तुलना में अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। उस मानदंड में निंदा का दंड भी अपीलकर्ता को पदोन्नति से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि जो देखा जाना चाहिए वह प्रशासन की दक्षता के लिए आवश्यक न्यूनतम योग्यता है। मामले के उस दृष्टिकोण में एक वरिष्ठ व्यक्ति, भले ही वह कम योग्यता वाला हो, पदोन्नति के मामले में प्राथमिकता प्राप्त करेगा और योग्यता का तुलनात्मक मूल्यांकन करने की आवश्यकता नहीं है।”

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि मामले में पदोन्नति का विषय वह पद नहीं था, जहां चयन का एकमात्र मानदंड योग्यता थी बल्कि वरिष्ठता भी थी, जिसके लिए याचिकाकर्ता 2008-09 में हकदार बन गया था। चूंकि निंदा का दंड याचिकाकर्ता को पदोन्नत करने में बाधा नहीं था, इसलिए उसे 2008-09 के लिए पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए।

तदनुसार, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने और यदि उपयुक्त पाया जाता है तो उसे पदोन्नत करने के लिए 2008-09 में की गई पदोन्नति की समीक्षा करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: दिनेश कुमार माथुर बनाम राजस्थान राज्य

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