क्या बलात्कार और POCSO Act के दोषियों को जेल से खुले शिविरों में भेजा जा सकता है? राजस्थान हाईकोर्ट ने मामले को बड़ी पीठ को भेजा
विरोधाभासी विचारों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेजा कि क्या जेल में कारावास की सजा काट रहे IPC की धारा 376/POCSO Act के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए गए कैदी को खुले शिविर में भेजा जा सकता है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने जेल से खुले शिविरों में ट्रांसफर करने की मांग करने वाले व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा,
“इस याचिका में शामिल कानूनी मुद्दे पर कोई सटीक निर्णय नहीं है, बल्कि इस न्यायालय की विभिन्न खंडपीठों की परस्पर विरोधी राय और विचार हैं लेकिन आशाराम उर्फ आशु (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून के प्रश्न को खुला रखा गया। इसलिए इसे आने वाले समय के लिए तय किया जाना आवश्यक है, जिससे इन याचिकाओं में शामिल कानूनी मुद्दे पर आदेशों में एकरूपता हो।”
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि इस मुद्दे पर न्यायालय की खंडपीठ ने अजीत सिंह बनाम राजस्थान राज्य (अजीत सिंह केस) के मामले में पहले ही फैसला कर लिया, जिसमें दोषियों को ओपन एयर कैंपों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया। वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस मामले में दिए गए आदेश का बाद में कई मामलों में पालन किया गया।
इसके अलावा, न्यायालय की अन्य समन्वय पीठ ने आशाराम बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (आशाराम केस) के मामले में भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाया, जिसकी सुप्रीम कोर्ट में भी आलोचना की गई। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की और दोषियों को ओपन एयर कैंपों में ट्रांसफर करने का फैसला बरकरार रखा। इसके विपरीत, राज्य की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) ने न्यायालय की अन्य खंडपीठ के मामले का हवाला दिया।
राजेंद्र @ गोरू बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (गोरू केस) जिसमें न्यायालय ने राजस्थान कैदी ओपन एयर कैंप नियम, 1972 (नियम) के नियम 3 पर विचार किया। माना कि दोषी के अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सामान्यतः शब्द पर विचार किया जाना चाहिए। नियम के नियम 3 में ओपन एयर कैंप में प्रवेश के लिए अयोग्यता निर्धारित की गई और प्रावधान किया गया कि सूचीबद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए कैदी, जिसमें बलात्कार का अपराध भी शामिल है सामान्यतः ओपन एयर कैंप में ट्रांसफर होने के लिए पात्र नहीं होंगे।
यह तर्क दिया गया कि POCSO के तहत जघन्य अपराधों के दोषी लोगों को ओपन एयर कैंप में स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे अन्य कैदियों के परिवारों के मन में डर पैदा होगा और उनके बच्चे सुरक्षित नहीं रहेंगे। एएजी ने आगे बताया कि गोरू मामले में लिए गए निर्णय का अनुसरण न्यायालय की दो अन्य खंडपीठों ने भाग सिंह @ भागीरथ बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (भाग सिंह मामला) और विंकेश @ विका बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (विंकेश मामला) में किया।
इस विवाद को सुनने के बाद न्यायालय ने इस मुद्दे पर परस्पर विरोधी विचार प्रस्तुत करने वाले विभिन्न आदेशों का अवलोकन किया। कहा कि चूंकि गोरू मामले भाग सिंह मामले और विंकेश मामले में तीन निर्णयों को याचिकाकर्ताओं द्वारा चुनौती नहीं दी गई, इसलिए इन्हें अंतिम रूप दिया जा चुका है। हालांकि चूंकि इन्हें न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया। इसलिए आशाराम मामले में निर्णय इन निर्णयों की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए पारित किया गया। इसके अलावा न्यायालय ने पाया कि आशाराम मामले के खिलाफ चुनौती का निर्णय भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में किया गया लेकिन कानून के प्रश्न को खुला रखा गया। इसलिए भविष्य में किसी भी विरोधाभासी आदेश से बचने के लिए इस पर अभी निर्णय लेने की आवश्यकता है।
“न्यायिक शिष्टाचार और कानूनी औचित्य की मांग है कि जहां एकल पीठ या खंडपीठ समन्वय क्षेत्राधिकार वाली पीठ के निर्णय से सहमत नहीं है तो मामले को बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए। वर्तमान जैसी स्थिति में, जहां इस न्यायालय की विभिन्न खंडपीठों और एकल पीठों द्वारा दो परस्पर विरोधी विचार लिए गए हैं, इस न्यायालय के पास मामले को विशेष/बड़ी पीठ को भेजने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, जिससे विवाद को कानून के अनुसार समाप्त किया जा सके।”
तदनुसार, मामले को विशेष/बड़ी पीठ के गठन के लिए चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: गंगाराम बनाम राजस्थान राज्य और अन्य तथा अन्य संबंधित याचिकाएँ