धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का अपराध एक साथ नहीं हो सकता: हाईकोर्ट ने वाणिज्यिक मामलों में राजस्थान पुलिस की ओर से की गई "नियमित" एफआईआर पर अफसोस जताया

Update: 2024-09-09 08:13 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 405 (आपराधिक विश्वासघात) (भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 318 और 316 के अनुरूप) एक दूसरे के विरोधी हैं और इन्हें एक साथ आरोपी व्यक्ति के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता।

जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि धारा 405 के तहत मुख्य तत्व शिकायतकर्ता की ओर से आरोपी को संपत्ति सौंपना है और इस तरह के सौंपे जाने से पहले या उस समय आरोपी की ओर से बेईमानी का कोई तत्व मौजूद नहीं है।

हालांकि, धारा 420 के तहत यह दिखाना जरूरी है कि संपत्ति की डिलीवरी से पहले या उस समय आरोपी की ओर से बेईमानी मौजूद थी और आरोपी ने शिकायतकर्ता को झूठे बहाने से संपत्ति सौंपने के लिए प्रेरित किया।

न्यायालय एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर धारा 420 और 405 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।

याचिकाकर्ता ने सह-आरोपी से कुछ सामान खरीदा था, जिसके लिए उसने कथित तौर पर पूरी कीमत चुकाई थी। हालांकि, सामान के मूल विक्रेता (शिकायतकर्ता) ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि सह-आरोपी ने सामान की कीमत नहीं चुकाई है। इस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने याचिकाकर्ता और सह-आरोपी दोनों को आरोपी बनाते हुए एफआईआर दर्ज की। जांच के दौरान पुलिस ने सामान भी जब्त कर लिया।

याचिकाकर्ता ने उन सामानों, जो जल्दी खराब होने वाले थे, को वापस लेने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह उन सामानों का वास्तविक खरीदार था और उसे शिकायतकर्ता और सह-आरोपी के बीच किसी विवाद के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

न्यायालय ने धारा 420 और 405, आईपीसी के तहत आवश्यक तत्वों को गिनाया और माना कि दोनों धाराओं के तहत अपराध परस्पर विरोधी हैं और एक साथ नहीं हो सकते। इसने यह भी कहा कि विवाद पूरी तरह से व्यावसायिक प्रकृति का था और इसमें किसी अपराध के होने का खुलासा नहीं हुआ।

न्यायालय ने अफसोस जताया कि, "एफआईआर दर्ज करने से पहले, यह पता लगाने के लिए कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई कि कोई संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं। अगर आवश्यक जांच की गई होती, तो जाहिर तौर पर परिणाम अलग होते।"

न्यायालय ने अब राजस्थान पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जहां लेनदेन पूरी तरह से व्यावसायिक है, जैसे कि माल या अचल संपत्ति की बिक्री-खरीद, और माल/संपत्ति में हित/स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित हो गया है, वहां अनिवार्य प्रारंभिक जांच की जाए। इसने चेतावनी दी है कि जब तक इसकी रिपोर्ट में यह नहीं दिखाया जाता कि अपराध होने का प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है, तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए।

"प्रारंभिक जांच निश्चित तत्परता (अधिकतम एक सप्ताह या 10 दिन) के साथ की जानी चाहिए ताकि कथित अपराधी को सबूत नष्ट करने या फरार होने या अन्यथा पीई के दौरान कोई अन्य लाभ उठाने का लाभ न मिले," इसने कहा और याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर को रद्द कर दिया।

केस टाइटलः राणा राम बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (राजस्थान) 244

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