फीस जमा करने में एक दिन की देरी पर 5 लाख किए जब्त, राजस्थान हाईकोर्ट ने काउंसलिंग बोर्ड को लगाई फटकार

Update: 2025-10-10 08:55 GMT

राजस्थान हाई कोर्ट ने एक सफल NEET उम्मीदवार को बड़ी राहत देते हुए काउंसलिंग बोर्ड के कठोर फ़ैसले को पलट दिया। उम्मीदवार को फीस जमा करने में केवल एक दिन की देरी के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिसके बाद बोर्ड ने उसकी 5 लाख की ज़मानत राशि भी जब्त कर ली थी। कोर्ट ने इस जब्ती को अन्यायपूर्ण रूप से धनी होने का स्पष्ट मामला बताते हुए बोर्ड को फटकार लगाई।

जस्टिस समीर जैन की पीठ ने राय दी कि केवल प्रक्रियात्मक अनियमितताओं या देरी के कारण जिन्हें माफ़ किया जा सकता है, मेधावी उम्मीदवारों के सपनों को नहीं कुचला जाना चाहिए। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि योग्यता और धन के बीच की खींचतान में न्यायिक निकायों का यह कर्तव्य है कि वे उन युवा दिमाग की आकांक्षाओं और प्रेरणाओं की रक्षा करें, जो अच्छे मेडिकल संस्थानों तक पहुँचने के लिए अथक प्रयास करते हैं।

याचिकाकर्ता ने NEET परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 5 लाख की सुरक्षा राशि जमा की थी। दूसरे दौर की काउंसलिंग में उसे प्राइवेट कॉलेज आवंटित हुआ, जिसके लिए उसे 18.90 लाख की फीस जमा करनी थी। याचिकाकर्ता एक गरीब पृष्ठभूमि से आने वाला पिता-रहित बच्चा है, जो फीस के लिए मुख्य रूप से अपनी परदादी पर निर्भर है। फीस जमा करने की अंतिम तिथि से ठीक एक दिन पहले उसकी परदादी का निधन हो गया और उससे पहले के दो दिन सार्वजनिक अवकाश थे। इन विपरीत परिस्थितियों के कारण फीस जमा करने में केवल एक दिन की देरी हुई। बोर्ड ने यह फीस स्वीकार नहीं की, सीट रद्द कर दी और 5 लाख की ज़मानत राशि भी जब्त कर ली।

कोर्ट का कठोर अवलोकन और बोर्ड की निंदा

प्रतिवादी बोर्ड ने अपने बचाव में कहा कि उनका आचरण नियमानुसार है।

इस पर कोर्ट ने दो मुख्य बिंदुओं पर अपनी चिंता व्यक्त की:

पहला कोर्ट ने पाया कि बोर्ड द्वारा फीस जमा करने के लिए दिया गया कम समय और याचिकाकर्ता द्वारा सामना की गई असाधारण परिस्थिति उसकी सद्भावना को दर्शाती है।

दूसरा, कोर्ट ने कहा कि बोर्ड के पास फीस जब्त करने का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि वे यह स्पष्ट नहीं कर पाए कि जब्त की गई राशि को किस खाते में रखा जाएगा। उसका उपयोग कैसे होगा। कोर्ट ने इस कृत्य को अन्यायपूर्ण रूप से धनी होने का उदाहरण बताया।

कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि कल्याणकारी राज्य होने के बावजूद राज्य की एजेंसियां इतनी कम अवधि में लाखों की फीस जमा करने पर जोर क्यों दे रही हैं, जिससे गरीब पृष्ठभूमि के छात्रों को कठिनाई होती है। कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य एक बाध्यकारी वादी के रूप में व्यवहार कर रहा है।

अपने फैसले में कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी यह साबित करने में विफल रहे कि यदि याचिका को अनुमति दी जाती है तो उन्हें कोई ठोस नुकसान होगा।

इन सभी तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। याचिकाकर्ता को काउंसलिंग के तीसरे चरण में भाग लेने की अनुमति दी गई और निर्देश दिया गया कि उसकी ज़मानत राशि को आवंटित कॉलेज की फीस में समायोजित किया जाए।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल इस विशिष्ट मामले की अनूठी परिस्थितियों पर आधारित है और इसे नजीर के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति नेशनल मेडिकल कमीशन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और राज्य के मुख्य सचिव को भी भेजने का निर्देश दिया।

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