राजस्थान हाईकोर्ट ने संशोधित आंसर की और संशोधित मेरिट सूची के कारण एक वर्ष की सेवा के बाद सरकारी पद से बर्खास्त किए गए उम्मीदवारों को राहत देने से इनकार किया
राजस्थान हाईकोर्ट ने उन पीड़ित व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज किया, जिन्हें संशोधित आंसर की और परिणामी मेरिट सूची में बदलाव के कारण उनकी सेवा के एक वर्ष बाद पशुधन सहायक के पद से बर्खास्त कर दिया गया।
जस्टिस समीर जैन की पीठ उन व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें पद के लिए आयोजित परीक्षा में मेधावी घोषित किए जाने के बाद 2022 में पशुधन सहायक के रूप में नियुक्त किया गया। हालांकि, लगभग एक वर्ष बाद परीक्षा की मॉडल आंसर की को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई।
मामले के परिणामस्वरूप बाद में सरकार द्वारा संशोधित आंसर की प्रकाशित की गई और पदों के लिए संशोधित परिणाम जारी किए गए। इस संशोधित परिणाम के आधार पर याचिकाकर्ताओं को सेवा से बर्खास्त किया गया।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा नियुक्ति, ज्वाइनिंग, प्रशिक्षण और सेवाएं प्रदान करना उचित चयन प्रक्रिया के अनुसार था तो योग्यता में परिवर्तन के बावजूद याचिकाकर्ताओं की सेवाएं बंद नहीं की जानी चाहिए, बल्कि उन्हें जारी रखा जाना चाहिए। हालांकि यदि यह संभव नहीं है तो याचिकाकर्ताओं को भविष्य की रिक्तियों के विरुद्ध समायोजित किया जाना चाहिए, क्योंकि नौकरी की प्रकृति आवर्ती थी।
दूसरी ओर प्रतिवादियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं के नियुक्ति पत्रों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि सबसे पहले नियुक्ति किसी मुकदमे के अधीन थी। दूसरी बात यह कि उनकी सेवा का प्रावधान परिवीक्षा पर था और सेवा अभी तक पुष्टि नहीं हुई। यह भी तर्क दिया गया कि नई मेरिट सूची के अनुसार, 285 उम्मीदवार ऐसे थे, जो याचिकाकर्ताओं की तुलना में अधिक मेधावी थे।
इसलिए ऐसे उम्मीदवारों की तुलना में याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति देना मनमाना, अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण होगा।
प्रतिवादियों के वकील की दलीलों से सहमत होते हुए न्यायालय ने कहा कि नियुक्ति पत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि नियुक्ति पूर्ण नहीं है, बल्कि यह बाद में मुकदमेबाजी और परिवीक्षा अवधि पूरी होने पर निर्भर है। इसके अलावा नियुक्ति पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि इस परिवीक्षा अवधि के दौरान बिना किसी कारण के सेवा समाप्त की जा सकती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि संशोधित मेरिट सूची में याचिकाकर्ताओं से ऊपर 285 उम्मीदवार होने के तथ्य को ध्यान में रखते हुए भविष्य की रिक्तियों के लिए याचिकाकर्ताओं को समायोजित करना ऐसे 285 उम्मीदवारों के साथ भेदभावपूर्ण होगा।
तदनुसार, न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।
केस टाइटल- बृजसुंदर रेगर एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।