नाबालिगों से जुड़े बलात्कार के मामलों में समझौते का कोई कानूनी महत्व नहीं, राज्य का कर्तव्य है कि वह आरोपियों पर पूरी सख्ती से मुकदमा चलाए: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-09-04 06:25 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि नाबालिग लड़की से जुड़े बलात्कार के मामले में पीड़ित लड़की और उसके माता-पिता के साथ आरोपी द्वारा किए गए समझौते का कोई कानूनी महत्व नहीं है। इसे प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि ऐसे समझौते अक्सर जबरदस्ती अनुचित प्रभाव या यहां तक ​​कि वित्तीय प्रोत्साहन से जुड़े होते हैं।

कोर्ट ने कहा,

“ऐसे समझौते अक्सर वास्तविक समझौते के बजाय जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव को दर्शाते हैं। ऐसी लड़की के अभिभावक जो इस तरह के जघन्य अपराध की शिकार है, आरोपी के साथ समझौता करने के लिए क्यों सहमत होंगे।”

जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की पीठ 11 वर्षीय लड़की से बलात्कार के आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि पीड़िता ने पुलिस को दिए गए अपने बयान में बलात्कार के किसी भी आरोप से इनकार किया लेकिन मजिस्ट्रेट के सामने उसने अपना बयान पूरी तरह बदल दिया। इसलिए उसके बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता और उसके माता-पिता ने आरोपी के साथ समझौता कर लिया, जिसके आधार पर उसे जमानत दी जानी चाहिए।

सरकारी अभियोजक ने प्रार्थना का विरोध किया, जिन्होंने प्रस्तुत किया कि अपराध की गंभीरता के मद्देनजर पक्षों के बीच हुए समझौते को ऐसे मामले में लागू नहीं किया जा सकता।

सरकारी वकील की दलीलों के साथ तालमेल बिठाते हुए कोर्ट ने कहा कि कानून नाबालिगों को कमज़ोर मानता है। उनमें सूचित निर्णय लेने या समझौते के निहितार्थों को समझने की क्षमता का अभाव है। इसलिए नाबालिगों के खिलाफ़ यौन हिंसा के मामलों में राज्य ने बच्चे के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए कदम उठाया और निजी समझौतों के बावजूद पूरी कठोरता से मुकदमा चलाने का कर्तव्य था।

कोर्ट ने कहा,

“कानून मानता है कि नाबालिग कमज़ोर हैं। उनमें अपने दम पर पूरी तरह से सूचित निर्णय लेने की क्षमता का अभाव है। नाबालिगों के खिलाफ़ यौन हिंसा के मामलों में राज्य ने बच्चे के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए कदम उठाया यह मानते हुए कि नाबालिग समझौते के निहितार्थों को पूरी तरह से नहीं समझ सकता। परिवार वित्तीय प्रोत्साहन से प्रभावित हो सकता है, राज्य का कर्तव्य है कि वह किसी भी निजी समझौते या समझौते की परवाह किए बिना ऐसे अपराधों पर पूरी कठोरता से मुकदमा चलाए।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस तरह के समझौतों को कानूनी कार्यवाही को प्रभावित करने दिया गया तो इससे संभावित रूप से इसी तरह के अपराधों को बढ़ावा मिलेगा। यह देखा गया कि POCSO Act का उद्देश्य किसी भी निजी समझौते पर कमजोर व्यक्तियों की सुरक्षा और अपराधियों की जवाबदेही को प्राथमिकता देना है।

इसके अनुसार कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोप की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए आरोपी जमानत का हकदार नहीं है।

केस टाइटल- लक्ष्मण चरण बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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