मंदिर के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य; भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा ट्रस्टी के पास नहीं, देवस्थान विभाग के पास जमा किया जाना चाहिए: राजस्थान हाइकोर्ट

Update: 2024-04-25 06:49 GMT

राजस्थान हाइकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि मंदिर की भूमि के अधिग्रहण के बदले मुआवजा आयुक्त, देवस्थान विभाग के खाते में जमा किया जाना चाहिए। राज्य का कर्तव्य है कि वह मंदिर के अधिकारों की रक्षा करे और आयुक्त को धर्मार्थ बंदोबस्त का कोषाध्यक्ष माना जाता है, इसलिए देवस्थान विभाग 'सार्वजनिक ट्रस्ट' के रूप में रजिस्टर्ड मंदिरों के लिए मुआवजा प्राप्त करने का हकदार है।

जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट के अध्यक्ष द्वारा दायर जनहित याचिका पर फैसला सुना रही थी। याचिकाकर्ता के अनुसार राज्य में गैर-सरकारी मंदिर को वैकल्पिक भूमि आवंटित करने के लिए दिया गया मुआवजा ऐसे मंदिरों को व्यक्तिगत रूप से या उनके ट्रस्ट को दिया जाना चाहिए।

अदालत ने रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों के विपरीत देवस्थान विभाग की इस मामले में संरक्षक की भूमिका है।

उन्होंने कहा,

“मंदिर शाश्वत नाबालिग है और पुजारी/ट्रस्टी केवल इसके रखवाले के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार मंदिर की भूमि के अधिग्रहण के बदले में मुआवजा आयुक्त देवस्थान विभाग के खाते में रहना चाहिए, जो बदले में समिति के निर्णय के अनुसार वैकल्पिक भूमि की खरीद के लिए इसका उपयोग करेगा और खरीदी जाने के बाद ऐसी भूमि मंदिर को वापस आवंटित की जाएगी।”

अदालत ने कहा कि विचाराधीन मंदिर राजस्थान सार्वजनिक न्यास अधिनियम 1959 की धारा 2(11) के तहत सार्वजनिक न्यास के रूप में रजिस्टर्ड है, इसलिए अधिनियम की धारा 37 सीधे लागू होगी।

लागू प्रावधानों के अनुसार देवस्थान आयुक्त मंदिर के 'कोषाध्यक्ष' के रूप में कार्य करेंगे तथा अधिनियम की धारा 2 (3) के अनुसार धर्मार्थ बंदोबस्ती प्राप्त करेंगे।

कहा गया,

“आयुक्त उक्त बंदोबस्ती पर कोषाध्यक्ष के रूप में नियंत्रण रखते हैं> इसके अलावा, मंदिर (देवता) शाश्वत नाबालिग है तथा रजिस्टर्ड सार्वजनिक ट्रस्ट है> प्रतिवादी-देवस्थान विभाग के आयुक्त के माध्यम से राज्य का यह कर्तव्य है कि वह मंदिर के अधिकारों तथा हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।”

जोधपुर में बैठी पीठ ने कहा कि मंदिर के मामलों का प्रबंधन करने वाला ट्रस्ट यह दावा नहीं कर सकता कि मुआवजा उनके खाते में ही जमा किया जाना चाहिए।

अदालत ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 7 के तहत नियुक्त आयुक्त मुआवजे की राशि का उपयोग केवल उसी के लिए गठित समिति की सिफारिशों के अनुसार ही करेगा। आयुक्त निगम, पंचायत तथा विकास प्राधिकरण जैसी संबंधित संस्थाओं से मंदिर को भूमि आवंटित करने की प्रक्रिया की देखरेख करेंगे। इस प्रकार गठित समिति में अध्यक्ष के रूप में जिला कलेक्टर तथा चार अन्य सदस्य शामिल हैं।

न्यायालय ने बताया कि 1959 अधिनियम के अध्याय IX में सार्वजनिक ट्रस्टों पर नियंत्रण रखने की शक्ति, जिसमें कार्यकारी ट्रस्टी या अन्य ट्रस्टी से विवरण, खाते या रिपोर्ट मंगाने या वापस करने की शक्ति शामिल है, आयुक्त और सहायक आयुक्त के पास निहित है।

न्यायालय ने राज्य के राजस्व विभाग द्वारा जारी दिनांक 11.06.2020 के परिपत्र की प्रासंगिकता पर भी ध्यान दिया। इस सर्कुलर में कहा गया कि राज्य द्वारा भूमि अधिग्रहण के बदले मंदिर को दिया जाने वाला मुआवजा पुजारी/ट्रस्टी जो कि केयरटेकर है, द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसे संबंधित देवस्थान विभाग में जमा किया जाना चाहिए।

इस सर्कुलर को याचिकाकर्ता ने रिट में चुनौती नहीं दी। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि उपर्युक्त और विशेष रूप से पूर्वोक्त परिपत्र के मद्देनजर, याचिकाकर्ता मंदिर के भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजे का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि यह स्पष्ट है कि राशि देवस्थान आयुक्त के खाते में ही रहनी चाहिए।”

याचिकाकर्ता जोधपुर के जाजीवाल भाटियान गांव में श्री महादेव जी मंदिर (मठ) नामक रजिस्टर्ड ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। 2020 के राजपत्र अधिसूचना के अनुसार शहर के चारों ओर रिंग रोड के निर्माण के लिए ट्रस्ट की भूमि सहित कुछ भूमि अधिग्रहित की गई। मुआवजे का फैसला 2021 में पारित किया गया, लेकिन राशि ट्रस्ट के खाते में ट्रांसफर नहीं की गई।

इस रिट याचिका में ट्रस्ट के अध्यक्ष ने भूमि अधिग्रहण अधिकारी के 19.01.2015 के आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि मुआवजे की राशि आयुक्त-देवस्थान विभाग के खाते में जारी की जाएगी। इसके बाद देवस्थान विभाग द्वारा भी इसी तरह का आदेश जारी किया गया।

मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व एडवोकेट मोती सिंह ने किया।

प्रतिवादी राज्य की ओर से एएजी मनीष पटेल पेश हुए।

केस टाइटल- प्रताप राम बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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