'अचानक झगड़ा हुआ, कोई पूर्व-योजना नहीं': राजस्थान हाईकोर्ट ने गर्भवती पत्नी का गला घोंटने के लिए पति की हत्या की सजा गैर-इरादतन हत्या में बदली

Update: 2024-08-26 06:25 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया, जो अपनी गर्भवती पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद पिछले 10 वर्षों से आजीवन कारावास की सजा काट रहा था।

जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ ने दोषी की अपील पर सुनवाई करते हुए दोषी का आरोप हत्या से गैर-इरादतन हत्या में बदल दिया और उसकी सजा आजीवन कारावास से घटाकर 10 वर्ष की अवधि की, जो उसने पहले ही जेल में बिताई है।

न्यायालय ने पाया कि अभिलेख पर मौजूद सामग्री से यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने अपराध की पूर्व योजना नहीं बनाई थी बल्कि उसने विवाद के बाद अपराध किया था, जिसके कारण अचानक झगड़ा हुआ और आवेश में आकर अपराध किया गया।

इसलिए यह कृत्य हत्या के अपवादों में से एक के अंतर्गत आता है। हत्या के बजाय गैर इरादतन हत्या के अंतर्गत आता है।

कोर्ट ने कहा,

“सम्पूर्ण घटना से पता चलता है कि मृतक की हत्या करने के लिए कोई पूर्व तैयारी नहीं की गई। इसलिए हत्या करने के लिए पूर्व तैयारी का अभाव आईपीसी की धारा 300 के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करता है। इसलिए धारा 302 आईपीसी के तहत अभियुक्त को दोषी ठहराना उचित नहीं लगता।”

मामले के तथ्य यह थे कि मृतक के पिता द्वारा एक लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी गर्भवती बेटी की हत्या अपीलकर्ता और उसके माता-पिता द्वारा उनके बीच विवाद के कारण की गई।

यह विवाद तब हुआ जब अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों ने मृतका से उसके पिता के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए कहा और मृतका ने इनकार कर दिया, जिसके बाद उसकी गला घोंटकर हत्या कर दी गई।

अपराध करने के बाद अपीलकर्ता पुलिस स्टेशन पहुंचा और खुद ही अपनी पत्नी की हत्या करने का न्यायेतर कबूलनामा किया। उसके कबूलनामे के आधार पर पुलिस ने मृतका का शव और अपराध स्थल से कुछ अन्य साक्ष्य बरामद किए।

ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को हत्या का दोषी करार देते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसके खिलाफ दोषी ने अपील दायर की थी, जो 10 साल से जेल में था।

कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही अपीलकर्ता को पता था कि मृतका का गला घोंटने से उसकी मौत हो सकती है लेकिन मौत की संभावना ऐसी नहीं थी, जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता का उसे मारने का इरादा था।

“विचाराधीन घटना बिना किसी पूर्व-योजना के हुई थी बल्कि अचानक लड़ाई और आवेश में आकर हुई थी। मृतका की हत्या करने के लिए आरोपी-अपीलकर्ता की ओर से कोई पूर्व तैयारी नहीं थी। चूंकि वर्तमान मामले में अभियुक्त-अपीलकर्ता की ओर से इरादे का घटक स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है, इसलिए यह धारा 299 आईपीसी के तहत प्रदान की गई सदोष मानव वध की परिभाषा के अंतर्गत आता है।”

इस प्रकाश में न्यायालय ने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि हत्या से बदलकर सदोष मानव वध कर दिया, जो हत्या के बराबर नहीं है। तदनुसार, उसकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 वर्ष कर दिया, जो उसने अब तक काट लिया था इसे न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त बताते हुए।

केस टाइटल- अमर चंद बनाम राज्य

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