राजस्थान हाईकोर्ट ने दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए 45% न्यूनतम अंक नियम बरकरार रखा, विशेष अपील खारिज
राजस्थान हाईकोर्ट ने पशु चिकित्सा अधिकारी भर्ती प्रक्रिया में दिव्यांग श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए निर्धारित 45% न्यूनतम उत्तीर्णांक को चुनौती देने वाली विशेष अपील खारिज की। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मानक पूर्ण आयोग द्वारा लिए गए निर्णय के बाद लागू किया गया और आयोग की वेबसाइट पर भी उपलब्ध था, इसलिए इसे नए सिरे से लागू किया गया मानना गलत है।
डिवीजन बेंच डॉ. जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी और जस्टिस बिपिन गुप्ता ने सिंगल बेंच का निर्णय बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि 45% की पात्रता सीमा आयोग के संपूर्ण निर्णय पर आधारित है और भर्ती विज्ञापन में वेबसाइट पर उपलब्ध निर्देशों को देखने के लिए स्पष्ट रूप से कहा गया।
अदालत ने कहा कि विज्ञापन को अलग-थलग नहीं पढ़ा जाना चाहिए, बल्कि उसे पूरा पैकेज मानते हुए देखा जाना चाहिए, जिसमें वेबसाइट पर उपलब्ध पूरक निर्देश भी शामिल होते हैं।
अदालत ने टिप्पणी की,
“भर्ती विज्ञापन को स्वतंत्र इकाई के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता बल्कि यह एक समेकित अधिसूचना है, जिसमें आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध निर्देश भी शामिल हैं। जब स्वयं विज्ञापन में उम्मीदवारों को वेबसाइट देखने के लिए कहा गया तो उपलब्ध जानकारी से अनभिज्ञ रहने का दावा नहीं किया जा सकता।”
यह अपील उन दिव्यांग अभ्यर्थियों द्वारा दायर की गई, जिन्होंने 2019 के विज्ञापन के आधार पर भर्ती में भाग लिया था। उनका कहना था कि 45% न्यूनतम अंक का मानक मूल विज्ञापन में उल्लिखित नहीं था और चयन प्रक्रिया के बीच में मनमाने ढंग से लागू किया गया, जिससे नियमों में मध्य-प्रक्रिया परिवर्तन हुआ और उनका अधिकार, विशेषकर अनुच्छेद 14 के तहत प्रभावित हुआ।
वहीं राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) ने तर्क दिया कि यह मानक पूर्ण आयोग के निर्णय के अनुरूप था और समान प्रकृति की सभी भर्तियों में एकसमान रूप से लागू किया गया। विज्ञापन में स्पष्ट रूप से वेबसाइट पर लिए जाने वाले अतिरिक्त निर्देशों का उल्लेख था, इसलिए यह कहना अनुचित है कि जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी।
अदालत ने सभी पक्षकारों की दलीलों पर सुनवाई के बाद सिंगल बेंच के तर्कों और आयोग की दलीलों का समर्थन किया। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसे मानक तय करना प्रशासनिक दृष्टि से उचित है और चयन प्रक्रिया में संतुलन तथा वस्तुनिष्ठता को बढ़ाता है, इसलिए इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
इसके अतिरिक्त कोर्ट ने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि अपीलकर्ता बिना किसी आपत्ति के पूरी भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए और केवल असफल होने के बाद मानक को चुनौती दी। अदालत ने कहा कि यह स्थापित सिद्धांत है कि चयन प्रक्रिया में स्वेच्छा से भाग लेने के बाद उम्मीदवार बाद में उसकी वैधता पर प्रश्न नहीं उठा सकता।
इन सभी कारणों को देखते हुए हाईकोर्ट ने विशेष अपील खारिज करते हुए 45% न्यूनतम अंक मानदंड को वैध ठहराया।