राजस्थान हाईकोर्ट ने दिवंगत कांस्टेबल की विधवा को अनुग्रह राशि न देने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई, 20 लाख रुपये देने का निर्देश
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक सख्त टिप्पणी में कहा कि सेवा के दौरान मृत्यु होने पर कर्मचारी के परिवार को अनुग्रह राशि से वंचित करना केवल तकनीकी आधार पर असंवेदनशील और अति-तकनीकी रवैया है, जो कल्याणकारी शासन के उद्देश्य के विपरीत है।
जस्टिस फरजंद अली की एकल पीठ ने राज्य सरकार का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक अशिक्षित विधवा की अनुग्रह राशि की मांग केवल आवेदन में देरी के आधार पर खारिज कर दी गई, जबकि संबंधित विभाग ने स्वयं प्रशासनिक देरी स्वीकार की थी।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के पति राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल थे, जिनकी सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी। याचिकाकर्ता को पारिवारिक पेंशन तो स्वीकृत कर दी गई लेकिन वह ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण अनुग्रह सहायता योजना की जानकारी से अनभिज्ञ थीं। पति की मृत्यु के लगभग तीन वर्ष बाद जैसे ही उन्हें योजना के बारे में पता चला उन्होंने आवेदन प्रस्तुत किया।
आवेदन देने के बाद भी उन्हें विभागों के चक्कर काटने पड़े और अंततः आवेदन यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया गया कि यह समयसीमा के बाद दिया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि संबंधित पुलिस अधीक्षक (SP) ने स्वयं यह स्वीकार किया कि आवेदन में देरी विभागीय लापरवाही के कारण हुई थी। फिर भी सरकार ने याचिका को खारिज कर दिया।
साथ ही यह भी कहा गया कि कर्मचारियों और उनके परिजनों को कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देना सरकार की जिम्मेदारी है और ऐसा न करना प्रशासनिक चूक है।
वहीं, राज्य सरकार ने यह कहते हुए दावा खारिज किया कि राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1996 के तहत मृत्यु के एक वर्ष के भीतर आवेदन किया जाना आवश्यक है।
अदालत ने तथ्यों का परीक्षण करते हुए पाया कि याचिकाकर्ता अशिक्षित और ग्रामीण महिला हैं, जिन्होंने जैसे ही योजना की जानकारी प्राप्त की तुरंत आवेदन किया। साथ ही विभागीय अधिकारियों द्वारा देरी की जिम्मेदारी स्वीकार किए जाने को भी अदालत ने महत्वपूर्ण माना।
अदालत ने कहा,
“जब स्वयं अधिकारी यह स्वीकार कर रहे हैं कि देरी विभागीय स्तर पर हुई तब विधवा को इस देरी के लिए दोषी ठहराना न केवल अन्यायपूर्ण बल्कि अमानवीय दृष्टिकोण है। ऐसी तकनीकी जिद योजनाओं के कल्याणकारी उद्देश्य को विफल करती है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि सेवा के दौरान कर्मचारी की मृत्यु के मामलों मे प्रशासन को सहानुभूति और तत्परता से कार्य करना चाहिए ताकि शोकाकुल परिवारों को अनावश्यक परेशानी न हो।
अंततः अदालत ने राज्य सरकार के आदेश को अवैध और मनमाना घोषित करते हुए याचिका स्वीकार की और निर्देश दिया कि राज्य सरकार 60 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को 20 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान करे।