उच्च मेरिट पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को सामान्य वर्ग में समायोजित करना अनिवार्य: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2025-12-05 07:12 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि यदि किसी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी ने शुल्क छूट के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की आरक्षण-सुविधा का लाभ नहीं लिया और उसके अंक सामान्य वर्ग की अंतिम चयन कट-ऑफ से अधिक हैं तो उसे अनिवार्य रूप से सामान्य वर्ग में समायोजित किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में मेरिट माइग्रेशन का सिद्धांत लागू होता है, जिसके तहत खुली श्रेणी (जनरल कैटेगरी) में सभी समुदायों के योग्य अभ्यर्थियों को समान अवसर मिलता है।

जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें एक महिला अभ्यर्थी ने भर्ती प्रक्रिया को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता बीसी (पिछड़ा वर्ग) महिला वर्ग (BC, WE) से संबंधित थीं। इस श्रेणी के लिए केवल एक ही सीट आरक्षित है, जिसे किसी अन्य उम्मीदवार को दे दिया गया। याचिकाकर्ता को चयन के बजाय आरक्षित सूची (रिज़र्व लिस्ट) में डाल दिया गया, जबकि वह इस श्रेणी की एकमात्र प्रत्याशी है।

तथ्यों के अनुसार BC महिला वर्ग की कट-ऑफ 61 अंक थी जबकि सामान्य महिला वर्ग की कट-ऑफ 58 अंक थी जो इससे कम थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि आरक्षित श्रेणी की चयनित उम्मीदवार के अंक सामान्य वर्ग की कट-ऑफ से अधिक थे और उसने आयु योग्यता या अन्य किसी तरह की आरक्षण छूट का लाभ नहीं लिया, केवल परीक्षा शुल्क में रियायत प्राप्त की थी। ऐसे में उसे आरक्षित सीट पर रखने के बजाय सामान्य महिला वर्ग में समायोजित किया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप, आरक्षित वर्ग की जो सीट खाली होती, उस पर आरक्षित सूची में शामिल अकेली उम्मीदवार यानी याचिकाकर्ता को नियुक्त किया जाना चाहिए था।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए यह कानूनी स्थिति दोहराई। अदालत ने विशेष रूप से दीपा ई.वी. बनाम भारत संघ मामले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि यदि कोई आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की कट-ऑफ से अधिक अंक हासिल करता है और आरक्षण का कोई लाभ नहीं लेता तो उसे सामान्य श्रेणी से चयन से वंचित नहीं किया जा सकता। इसी सिद्धांत को बीएसएनएल बनाम संदीप चौधरी मामले में भी दोहराया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार सामान्य कट-ऑफ से अधिक अंक लाते हैं और उन्होंने आयु, योग्यता या अन्य आवश्यक शर्तों में कोई छूट नहीं ली है तो मेरिट माइग्रेशन अनिवार्य होता है।

इन्हीं न्यायिक सिद्धांतों के आलोक में राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि प्रशासनिक चूक संविधान में निहित समानता के अधिकार को निष्फल नहीं कर सकती। अंतिम मेरिट से जब यह स्पष्ट हो गया कि आरक्षित वर्ग की चयनित उम्मीदवार के अंक सामान्य महिला वर्ग की कट-ऑफ से अधिक थे, तब राज्य का यह कर्तव्य बनता कि उसे सामान्य महिला वर्ग में रखा जाए। ऐसा न करना कानूनन गलत था और चयन प्रक्रिया को दूषित करने वाला कदम था।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि संबंधित अधिकारियों ने उस उम्मीदवार को सामान्य महिला वर्ग में स्थानांतरित न करके भूल की। चूंकि याचिकाकर्ता BC महिला वर्ग की रिज़र्व लिस्ट में एकमात्र अभ्यर्थी थीं और उन्होंने अगले उच्चतम अंक प्राप्त किए, इसलिए वह आरक्षित वर्ग की खाली हुई सीट पर नियुक्ति की हकदार हैं।

इसी आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरक्षित वर्ग में उत्पन्न हुई परिणामी रिक्ति को रिज़र्व लिस्ट के माध्यम से भरा जाए और याचिकाकर्ता को नियमों के अनुरूप नियुक्ति प्रदान की जाए।

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