आपराधिक न्याय प्रणाली दंड से आगे बढ़कर सुधार पर केंद्रित: राजस्थान हाईकोर्ट ने गरीब दोषियों को बिना जमाराशि के परिवीक्षा पर रिहा करने का आदेश दिया
राजस्थान हाईकोर्ट ने सुधारात्मक न्याय के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि दंड देने और अपराध के विरुद्ध रोकथाम के अलावा आपराधिक कानून के सिद्धांत और उद्देश्य भी अपराधियों के सुधार पर केंद्रित हैं, जो परिवीक्षा की अवधारणा में निहित हैं।
हाईकोर्ट ने कहा,
“आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली अक्सर दंड और पुनर्वास के बीच संतुलन बनाने का लक्ष्य रखती है, जो अपराध करने वाले व्यक्तियों में सकारात्मक बदलाव की संभावना पर जोर देती है। आपराधिक कानून का लक्ष्य केवल दंड देने से आगे बढ़कर है। दंड व्यक्तियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने और उन्हें रोकने का काम करता है, वहीं आपराधिक व्यवहार में योगदान देने वाले अंतर्निहित कारकों को संबोधित करने के महत्व को भी मान्यता मिल रही है।”
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने अभियोजन व्यय जमा करने की शर्त के साथ अपीलीय न्यायालय द्वारा परिवीक्षा दिए गए दोषियों (याचिकाकर्ताओं) को राहत प्रदान की। आर्थिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण याचिकाकर्ता राशि जमा नहीं कर पाए। इस प्रकार सलाखों के पीछे ही रहे।
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के लिए अभियोजन व्यय जमा करने की शर्त खारिज की और कहा कि अधिनियम उचित मामलों में अपराधियों को जेल में डालने के बजाय उन्हें सुधारने का अवसर प्रदान करके आदतन अपराधी बनने से बचाने के लिए बनाया गया था।
याचिकाकर्ताओं को रात के समय एक दुकान में घुसने और उसमें रखी सामग्री चोरी करने के लिए दोषी ठहराया गया था। उन्हें शुरू में जुर्माने के साथ दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि अपील दायर करने पर अपीलीय न्यायालय नेहालांकि उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की उन्हें अधिनियम के तहत 10,000 रुपये प्रत्येक के अभियोजन व्यय और जमानत बांड जमा करने की शर्त पर रिहा कर दिया।
अभियोजन व्यय जमा करने में असमर्थ होने के कारण याचिकाकर्ता अभी भी जेल में थे और इसलिए उन्होंने यह याचिका दायर की थी।
जस्टिस अरुण मोंगा ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का जज रहते हुए उनके द्वारा सुनाए गए नासरी बनाम हरियाणा राज्य के मामले का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कुछ सिद्धांत निर्धारित किए थे, जिन्हें परिवीक्षा पर रिहाई के संभावित लाभ बताते हुए न्यायालयों द्वारा सजा सुनाते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सूची में अपराध की प्रकृति, अपराधी की व्यक्तिगत परिस्थितियां, आपराधिक इतिहास, अपराधी की पुनर्वास की इच्छा और क्षमता, अपराधी के सामुदायिक संबंध आदि जैसे कारक शामिल थे।
न्यायालय ने आगे कहा कि सुधार पर अधिक ध्यान केंद्रित करने और कारावास के विकल्प का उपयोग करने की अवधारणा आपराधिक न्याय के अधिक समग्र दृष्टिकोण को दर्शाती है और परिवीक्षा आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधारात्मक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छे तंत्रों में से एक है।
कुछ मामलों में कुछ अपराधियों को कैद किए जाने के बजाय सामुदायिक निगरानी में रहने के लिए कहा जा सकता है। ऐसी परिवीक्षा अवधि के दौरान अपराधी को कुछ शर्तों का पालन करने के लिए कहा जा सकता है जैसे कि परिवीक्षा अधिकारी को नियमित रूप से रिपोर्ट करना परामर्श या उपचार कार्यक्रमों में भाग लेना और रोजगार या शिक्षा बनाए रखना।
इसका उद्देश्य अपराधी को सहायता मार्गदर्शन और अवसर प्रदान करना तथा उसके आपराधिक व्यवहार के मूल कारणों का पता लगाना और सकारात्मक जीवन कौशल विकसित करना है। परिवीक्षा के दौरान प्रदान की गई गहन निगरानी और मार्गदर्शन अपराधी को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन करने और दोबारा अपराध करने की संभावना को कम करने में मदद कर सकता है।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को बहुत गरीबी का सामना करना पड़ा है, इसलिए अपीलीय आदेश को अभियोजन व्यय जमा करने की शर्त को हटाने की सीमा तक संशोधित किया गया।
तदनुसार, याचिका को अनुमति दी गई और याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल- गणेश और अन्य बनाम राजस्थान राज्य