राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस से पहले से ही विवाहित लिव-इन पार्टनर्स की सुरक्षा याचिका पर विचार करने को कहा
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया कि वह अपने विवाह से बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष और महिला को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने पर विचार करे।
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ चार बच्चों की मां और एक बच्चे के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो पिछले कुछ दिनों से अपने-अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना एक साथ रिश्ते में रह रहे हैं और उन्हें अपने रिश्तेदारों से जान का खतरा होने की आशंका हैं।
पीठ ने कांति और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य (2023) का हवाला दिया, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज के रूप में समान तथ्यों से निपटते हुए जस्टिस मोंगा ने फैसला सुनाया था कि मुख्य मुद्दा याचिकाकर्ताओं के रिश्ते की वैधता नहीं थी बल्कि यह था कि क्या वे संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रकाश में संरक्षण के हकदार थे। यह फैसला सुनाया गया कि भले ही जोड़े का रिश्ता प्रथम दृष्टया व्यभिचारी प्रकृति का था, लेकिन कानून के शासन द्वारा शासित राष्ट्र में अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार बहुत ऊंचे स्थान पर है और पक्षों के बीच संबंधों की वैधता के बावजूद इसकी रक्षा की जानी है।
दिलचस्प बात यह है कि कांति (सुप्रा) का फैसला उसी वर्ष पारित पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के अन्य फैसले- बिंदर कौर और बनाम पंजाब राज्य और अन्य- जहां (2023) से अलग है जिसने अपने-अपने विवाह से बाहर एक साथ रह रहे जोड़े द्वारा दायर ऐसी याचिका खारिज कर दी थी।
इसे अवैध संबंध का क्लासिक मामला और याचिका को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए न्यायालय ने जोड़े पर जुर्माना भी लगाया और कहा कि विवाहित व्यक्ति अपने विवाह के दौरान दूसरों के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकते, क्योंकि ऐसा करना वैध कानूनी ढांचे का उल्लंघन होगा।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने भी देवी बुल्ली वेंकन्ना बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2023) में विवाहित व्यक्ति द्वारा दायर हेबियस कॉर्पस याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उस महिला को पेश करने की मांग की गई थी, जिसके साथ वह रह रहा था, जिसे उसके पिता ने ले लिया था।
न्यायालय ने याचिका खारिज की और याचिका को न्यायालय से मंजूरी की मुहर प्राप्त करके अवैध कार्यों को वैध बनाने की योजना माना। न्यायालय ने माना कि विवाह के बिना एक साथ रहने के जोड़े के विकल्प को मान्यता देने से विवाहित लोगों को अपने विवाह के दौरान दूसरों के साथ रहने का अधिकार नहीं मिलता।
केस टाइटल- माया और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य