व्यक्तिगत स्वतंत्रता: राजस्थान हाईकोर्ट ने गैर जमानती वारंट जमानती वारंट में बदला, कहा- गिरफ्तारी का आदेश केवल अदालत में पेश करने के लिए यंत्रवत् पारित नहीं किया जा सकता

Update: 2024-08-12 07:00 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत का आदेश संशोधित किया, जिसमें दहेज की शिकायत में व्यक्ति के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया था, क्योंकि वह अदालत में पेश होने में विफल रहा था। भले ही मामले में जांच अधिकारी द्वारा नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट दायर की गई हो।

जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि किसी नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को इतना हल्के में नहीं लिया जा सकता कि उसे अदालत में पेश करने के लिए यंत्रवत् गिरफ्तार करने का आदेश पारित किया जाए, जब तक कि अदालती प्रक्रिया से बचने का जानबूझकर प्रयास न किया गया हो।

आरोपी पर उसकी पत्नी द्वारा उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज के लिए प्रताड़ित करने की शिकायत के बाद आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था।

जांच के बाद जांच अधिकारी द्वारा नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिस पर शिकायतकर्ता द्वारा कोई आपत्ति नहीं जताई गई।

हालांकि इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा विरोध याचिका दायर की गई, जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लिया और उन्हें बुलाने के लिए जमानती वारंट जारी किए। जब याचिकाकर्ता पेश होने में विफल रहे तो ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी किए गए, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने यह निरस्तीकरण याचिका दायर की।

याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना था कि आरोपों के हर पहलू पर विचार करने के बाद जांच अधिकारी द्वारा अंतिम रिपोर्ट दाखिल की गई, जिसके मद्देनजर ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट टिकने योग्य नहीं थे। उन्हें रद्द किया जाना चाहिए। यह भी तर्क दिया गया कि पहले जारी किए गए समन भी याचिकाकर्ताओं को नहीं दिए गए।

याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत तर्कों के साथ तालमेल बिठाते हुए न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा गैर-जमानती वारंट बिना उचित सोच-विचार के बहुत ही यांत्रिक तरीके से जारी किए गए।

"याचिकाकर्ता के वकील ने सही ढंग से कहा कि ट्रायल कोर्ट को याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न होने पर सीधे गैर-जमानती वारंट जारी करने के बजाय जमानती वारंट जारी करके उपस्थित होने का एक और अवसर देना चाहिए था।"

अदालत ने आगे कहा कि जब तक याचिकाकर्ता जानबूझकर अदालती प्रक्रिया से बच नहीं रहे हैं तब तक उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट के ऐसे यांत्रिक पारित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह एक नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालता है।

तदनुसार, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने का आदेश रद्द कर दिया, इसे जमानती वारंट में बदल दिया और उन्हें ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- मदन लाल एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

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