साक्ष्य के अभाव में मौत की सज़ा पर हाईकोर्ट ने जताई हैरानी, आरोपी को किया बरी
राजस्थान हाईकोर्ट ने चौंकाने वाले फैसले में दो भाई-बहनों की हत्या और बहन के साथ कथित बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को बरी कर दिया।
कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत द्वारा दिए गए मृत्युदंड के फैसले पर गहरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए राज्य द्वारा दायर मृत्युदंड संदर्भ को भी अस्वीकार कर दिया।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस अनूप सिंघी की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि यह अविश्वसनीय है कि जिस मामले में न्यायालय को अभियोजन पक्ष के दावे का समर्थन करने वाले साक्ष्य का कोई निशान नहीं मिल रहा है, उसमें आरोपी को मौत की सज़ा सुनाई गई है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत के फैसले में ऐसा कोई आधार नहीं बताया गया है जो इस मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी में लाता हो।
कोर्ट ने पाया कि यह मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर था लेकिन अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को स्थापित करने वाली घटनाओं की शृंखला को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा।
न्यायालय ने जोर दिया कि अभियोजन की कहानी विश्वसनीय नहीं थी क्योंकि आरोपी की गिरफ्तारी तक घटना और उसके बीच कोई संबंध या कड़ी साबित नहीं हुई।
आरोपी को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया, जबकि प्राथमिकी (FIR) में उसका नाम भी नहीं था और न ही पीड़ितों या उनके परिवार के साथ उसकी कोई शत्रुता या रंजिश साबित हुई।
कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में मोटिव (उद्देश्य) का अभाव आरोपी के पक्ष में जाता है।
न्यायालय ने रक्त रंजित शर्ट और कथित हथियार की बरामदगी के तरीके पर भी गंभीर संदेह जताया। यह बरामदगी स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति में केवल पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में की गई, जिन्हें पुलिस के 'स्टॉक विटनेस' के रूप में देखा गया।
कोर्ट ने स्वीकार किया कि स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति अपने आप में घातक नहीं है लेकिन जब मामले के अन्य साक्ष्य भी कमज़ोर हों, तो यह अभियोजन पक्ष की विश्वसनीयता को और कम कर देती है। न्यायालय ने यह भी पाया कि कथित हथियार पर रक्त का कोई धब्बा नहीं था और ऐसे में केवल खून के धब्बे वाली शर्ट की बरामदगी हत्या का एकमात्र आधार नहीं हो सकती।
अपने विस्तृत विश्लेषण के आलोक में हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है।
तदनुसार न्यायालय ने दोषी व्यक्ति की दोषसिद्धि और सज़ा को खारिज करते हुए उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया।