2016 तक रही मौन: राजस्थान हाईकोर्ट ने लेक्चरर को 1998 से लाभ भुगतान के आदेश में किया संशोधन, देरी के लिए ठहराया जिम्मेदार

Update: 2025-03-11 08:31 GMT
2016 तक रही मौन: राजस्थान हाईकोर्ट ने लेक्चरर को 1998 से लाभ भुगतान के आदेश में किया संशोधन, देरी के लिए ठहराया जिम्मेदार

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थान न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को संशोधित किया, जिसमें कॉलेज को अर्थशास्त्र की लेक्चरर को 1998 में पीएचडी पूरी करने की तारीख से दो वार्षिक वेतन वृद्धि देने का निर्देश दिया गया, यह देखते हुए कि बाद में 2016 में ही लाभ की मांग उठाई गई थी।

ऐसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब लेक्चरर ने पीएचडी की डिग्री पास करने के बाद बकाया लाभ के लिए कोई लिखित आवेदन नहीं किया तो न्यायाधिकरण के लिए कॉलेज प्रबंधन को निर्देश जारी करने का कोई कारण नहीं था कि वह उसे पीएचडी की डिग्री पास करने और पूरी करने की तारीख से दो वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान करे।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने अपने आदेश में कहा कि लेक्चरर 1998 से 2016 तक लाभ के लिए अनुदान के लिए कोई अनुरोध या आवेदन किए बिना चुप रही। उसने स्वयं न्यायाधिकरण से संपर्क करने में देरी की। रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि प्रतिवादी नंबर 1 को याचिकाकर्ता विभाग में लेक्चरर-अर्थशास्त्र के रूप में नियुक्त किया गया। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने अपनी पीएचडी की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने वर्ष 1998 में अपनी पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।

ट्रिब्यूनल के समक्ष उनके आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेजों और 1989 के अधिनियम की धारा 21 के तहत आवेदन से पता चलता है कि पहली बार प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा बकाया राशि के अनुदान के लिए वर्ष 2016 में मांग उठाई गई, उससे पहले उनके द्वारा अपेक्षित डिग्री के साथ याचिकाकर्ता-प्रबंधन के पास कोई लिखित आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया।

एक बार जब यह तथ्य रिकॉर्ड पर स्थापित हो गया कि 01.08.2016 से पहले प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा न तो कोई अनुरोध किया गया और न ही पीएचडी डिग्री उत्तीर्ण करने के बाद बकाया राशि के अनुदान के लिए उनके द्वारा कोई लिखित आवेदन प्रस्तुत किया गया। इसलिए ट्रिब्यूनल के पास याचिकाकर्ता-प्रबंधन को निर्देश जारी करने का कोई कारण या अवसर उपलब्ध नहीं था।

प्रतिवादी को दो वार्षिक वेतन वृद्धि उस तिथि से दी जाए, जब उसने अपनी पीएचडी डिग्री उत्तीर्ण की और पूरी की। प्रतिवादी नंबर 1 पीएचडी डिग्री उत्तीर्ण करने की तिथि यानी वर्ष 1998 से 2016 तक चुप रही। वह स्वयं वर्ष 2016 में जागी और लाभ प्रदान करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। इसके बाद उसने स्वयं 1989 के अधिनियम की धारा 21 के तहत आवेदन दायर करके न्यायाधिकरण से संपर्क करने में देरी की।

न्यायालय ने भारत संघ एवं अन्य बनाम तरसेम सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने समान स्थिति से निपटा था। यह माना गया कि यदि बहुत देरी के बाद दावा किया जाता है तो बकाया रिट याचिका दायर करने की तारीख से तीन साल पहले तक सीमित होगा।

प्रतिवादी को कॉलेज में लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया। अपने कार्यकाल के दौरान, उसने 1998 में अपनी पीएचडी पूरी की। अपनी पीएचडी के अनुरूप वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ लेने के लिए उसने पहली बार 2016 में मांग उठाई, जिसे न्यायाधिकरण ने अनुमति दी। कॉलेज को 1998 में उसकी पीएचडी पूरी होने की तारीख से उसे दो वार्षिक वेतन वृद्धि देने का निर्देश दिया गया। इसे कॉलेज ने चुनौती दी थी।

इस प्रकार अदालत ने न्यायाधिकरण के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि लेक्चरर 1 अगस्त, 2018 से दो वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ पाने की हकदार होगी-जब उसने कॉलेज प्रबंधन के पास बकाया लाभ देने के लिए पहला आवेदन प्रस्तुत किया था।

अदालत ने कहा,

"याचिकाकर्ता-प्रबंधन को दो वार्षिक वेतन वृद्धि का भुगतान करने और तदनुसार, उसके वेतन का पुनर्निर्धारण और सभी परिणामी लाभ प्रतिवादी नंबर 1 को 01.08.2016 से ब्याज सहित दिए जाने का निर्देश दिया जाता है।"

अदालत ने कहा कि यदि कॉलेज प्रबंधन को अदालत के आदेश का पालन करने में किसी भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो याचिकाकर्ता की सेवा पुस्तिका का अनुरोध करते हुए राज्य को एक पत्र लिखा जाए, इस आश्वासन के साथ कि इस आदेश के अनुपालन के बाद इसे वापस कर दिया जाएगा।

इस प्रकार याचिका का निपटारा किया गया।

केस टाइटल: प्रबंध समिति और अन्य बनाम डॉ. विजय लक्ष्मी और अन्य

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