राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में अयोग्य प्रॉक्सी शिक्षकों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस नीति अपनाने का आह्वान किया, अंतरिम निर्देश जारी किए

Update: 2024-08-02 07:58 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति और अयोग्य और प्रॉक्सी शिक्षकों के बढ़ते मुद्दे पर गंभीरता से संज्ञान लिया, जिसमें सरकारी नियोजित शिक्षक अवैध रूप से बेरोजगार युवाओं को नियुक्त करते हैं। उक्त शिक्षकों के पास पढ़ाने के लिए बुनियादी योग्यता भी नहीं होती है, जो बड़े पैमाने पर स्टूडेंट्स के भविष्य और करियर के साथ खिलवाड़ करते हैं।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि वह प्रॉक्सी शिक्षकों की जीरो टॉलरेंस नीति का अभियान चलाए, जिसका उद्देश्य विद्यालय में शिक्षकों की उपस्थिति अनिवार्य है। प्रॉक्सी शिक्षक किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं हैं है और नीति तथा अभियान के क्रियान्वयन के लिए अंतरिम निर्देश जारी किए हैं।

न्यायालय सरकारी शिक्षिका द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने कहा कि जब वह छुट्टी पर थी तो उसके खिलाफ धारा 420 IPC के तहत मनगढ़ंत एफआईआर दर्ज की गई। इस एफआईआर में आरोप लगाया गया कि वह अपने स्थान पर डमी व्यक्ति का उपयोग कर रही थी। इसके बाद उसे निलंबित कर दिया गया। उसके खिलाफ आरोप-पत्र जारी किया गया। उसने इस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की।

न्यायालय ने आरोप-पत्र में हस्तक्षेप करने से इनकार किया और कहा कि आरोप-पत्र के खिलाफ आम तौर पर रिट याचिका तब तक नहीं होती, जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि आरोप-पत्र किसी ऐसे अधिकारी द्वारा जारी किया गया, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए सक्षम नहीं है। यह माना गया कि दोषी कर्मचारी को इसके बजाय आरोप-पत्र का जवाब प्रस्तुत करना चाहिए।

यह देखते हुए कि प्रतिवादियों को किसी भी कदाचार के लिए कर्मचारी के खिलाफ जांच शुरू करने से नहीं रोका जा सकता, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि शिक्षा प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस न केवल सभी के लिए शिक्षा बल्कि सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त करना आवश्यक है।

हालांकि यह देखा गया कि सरकारी स्कूलों में प्रॉक्सी शिक्षकों की व्यापक प्रथा बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित कर रही है। न्यायालय ने माना कि यह प्रथा महान पेशे पर धब्बा है, जो शिक्षा परिदृश्य की बहुत ही नकारात्मक छवि पेश करती है। कई स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता को खराब करने वाली प्रणाली की विफलता को दर्शाती है।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"केवल एक महान शिक्षक ही महान स्टूडेंट को गढ़ सकता है। शिक्षकों को अक्सर राष्ट्र निर्माता के रूप में पहचाना जाता है, क्योंकि वे राष्ट्र के भविष्य के नागरिकों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, शिक्षकों को बहुत बड़ी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, जिसे और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्र के भावी नागरिकों को दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता उन शिक्षकों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है, जिन्हें उन्हें पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जाता है।”

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने राजस्थान सरकार को स्थिति को हल करने के लिए तत्काल कदम उठाने तथा इस प्रथा को रोकने के लिए समाधान निकालने के लिए सामान्य आदेश जारी किया।

अंतरिम अवधि के लिए न्यायालय ने उपर्युक्त नीति और अभियान शुरू करने तथा निम्नलिखित उपाय अपनाने के अंतरिम निर्देश जारी किए-

सरकारी स्कूलों में नियमित आधार पर प्रॉक्सी शिक्षकों की जांच के लिए समितियों का गठन करना तथा कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए सभी दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करना उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करना।

स्कूलों में शिक्षकों की तस्वीरें प्रदर्शित करके जागरूकता पैदा करना, जिससे उन्हें पहचाना जा सके तथा प्रॉक्सी से अलग किया जा सके तथा यदि शिक्षक बिना किसी वैध कारण के अनुपस्थित रहते हैं तो चिंता व्यक्त की जा सके।

सभी स्कूल प्रमुखों को सख्त संदेश देना कि उन्हें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके संस्थान में प्रॉक्सी शिक्षण की कोई प्रथा न हो तथा निर्देशों का पालन न करने की स्थिति में उन्हें भी दोषी शिक्षकों के साथ कारण बताओ नोटिस दिया जा सकता है। ऐसे स्कूल प्रमुखों के खिलाफ निलंबन या सेवा समाप्ति सहित सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है।

व्यापक जनता के लिए अनुपालन तंत्र की स्थापना के संबंध में वेबसाइट और पोर्टल लॉन्च करना, जिसमें प्रॉक्सी शिक्षकों के खिलाफ शिकायत की जा सके। ऐसे पोर्टल में जिला शिक्षा अधिकारी और सभी जिलों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के संपर्क विवरण और एक टोल फ्री नंबर भी शामिल होना चाहिए। अंत में इन निर्देशों के साथ न्यायालय ने अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए प्रत्येक तिमाही में न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- मंजू गर्ग बनाम राजस्थान राज्य

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