परिसीमा के नियम अधिकारों को नष्ट करने के लिए नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर याचिका खारिज करने का आदेश रद्द किया
राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्व बोर्ड का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को इस तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया था कि मूल आवेदन के साथ परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत देरी माफी की अर्जी संलग्न नहीं थी, जिसे बाद में दाखिल किया गया था।
असिस्टेंट कलेक्टर का आदेश बहाल करते हुए, जिसने याचिका स्वीकार की थी, जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि कोर्ट का प्राथमिक कार्य विवाद का न्यायनिर्णयन करना है और परिसीमा के नियम पक्षों के अधिकारों को नष्ट करने के लिए नहीं बनाए गए हैं।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"परिसीमा के नियम पक्षकारों के अधिकारों को नष्ट करने के लिए नहीं हैं। उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पक्षकार विलंबकारी रणनीति का सहारा न लें बल्कि तुरंत अपना उपाय खोजें। कानूनी उपचार प्रदान करने का उद्देश्य कानूनी चोट के कारण हुए नुकसान की मरम्मत करना है। परिसीमा कानून उस कानूनी चोट के निवारण के लिए ऐसे कानूनी उपचार के लिए जीवनकाल निर्धारित करता है।"
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता के खिलाफ राजस्व वाद दायर किया गया। इस दौरान याचिकाकर्ता अपनी माँ की बीमारी के कारण कोर्ट में पेश नहीं हो सका, जिसके परिणामस्वरूप उसके खिलाफ एकतरफा (Ex-Parte) डिक्री पारित कर दी गई।
इस एकतरफा आदेश को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC की धारा 9, नियम 13) के तहत आवेदन दायर किया। यह आवेदन परिसीमा अवधि की समाप्ति के बाद 6 दिनों की देरी से दायर किया गया और इसमें देरी के कारणों को विस्तार से समझाया गया। बावजूद इसके बाद में परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत देरी को माफ करने के लिक अलग आवेदन भी दायर किया गया।
असिस्टेंट कलेक्टर ने इन आवेदनों को स्वीकार कर लिया और एकतरफा डिक्री रद्द कर दी। इस आदेश को प्रतिवादियों ने राजस्व बोर्ड के समक्ष चुनौती दी, जिसने इस तकनीकी आधार पर एकतरफा डिक्री को बहाल कर दिया कि CPC के तहत दायर मूल आवेदन के साथ सीमा अधिनियम की अर्जी संलग्न नहीं थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि देरी के कारणों को CPC के तहत दायर आवेदन में पहले ही अच्छी तरह से समझाया गया था, इसलिए देरी माफी के लिए अलग आवेदन दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद इस बात पर प्रकाश डाला कि देरी के कारणों को CPC के आवेदन में अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया था। इसके बाद प्रतिवादियों द्वारा इंगित की गई कमी को परिसीमा अधिनियम के तहत तुरंत आवेदन दाखिल करके दूर भी कर दिया गया था।
इन अवलोकनों के साथ कोर्ट ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि एक हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को तब तक परेशान नहीं करना चाहिए, जब तक कि ट्रायल कोर्ट ने पूरी तरह से अस्थिर आधार पर अपने विवेक का प्रयोग न किया हो।
कोर्ट ने माना कि परिसीमा के नियम पक्षों द्वारा किसी भी विलंबकारी रणनीति को रोकने के लिए बनाए गए हैं, न कि उनके अधिकारों को नष्ट करने के लिए। इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि असिस्टेंट कलेक्टर ने आवेदन स्वीकार करके सही किया था, जिसे राजस्व बोर्ड द्वारा अनावश्यक रूप से रद्द कर दिया गया था।
तदनुसार, याचिका स्वीकार की गई और असिस्टेंट कलेक्टर का आदेश बहाल कर दिया गया।