नज़रदारी रजिस्टर पुलिस की पसंद–नापसंद का दस्तावेज़ नहीं : राजस्थान हाईकोर्ट ने मनमाने तरीके से खोली गई हिस्ट्रीशीट रद्द की

Update: 2025-12-11 12:15 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी व्यक्तिगत पसंद या नापसंद के आधार पर किसी भी व्यक्ति का नाम नज़रदारी रजिस्टर (Surveillance Register) में दर्ज कर दे।

कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ खोली गई हिस्ट्रीशीट को गैरकानूनी और मनमाना बताते हुए निरस्त कर दिया।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने कहा कि हिस्ट्रीशीट खोलने का आधार पुलिस अधिकारियों की विवेकाधीन संतुष्टि जरूर है पर यह संतुष्टि तभी वैध मानी जाएगी, जब वह ठोस तथ्यों और उचित आधारों पर आधारित हो। केवल यह मान लेना कि कोई व्यक्ति अपराध करता है या करने की प्रवृत्ति रखता है कानूनन पर्याप्त नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस की राय मजबूत और विवेकपूर्ण आधारों पर टिकनी चाहिए। हिस्ट्रीशीट खोलते समय व्यक्ति की गतिविधियों का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है और यह प्रक्रिया किसी भी तरह की मनमानी या अनुमान पर आधारित नहीं हो सकती।

याचिकाकर्ता के खिलाफ कुल दस आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए थे लेकिन उनमें से केवल एक मामले में उसे दोषी ठहराया गया था। अन्य मामलों में या तो वह बरी हो चुका था या पुलिस ने नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट दी थी या फिर FIR ही रद्द कर दी गई थी। इसके बावजूद पुलिस अधीक्षक ने उसके विरुद्ध हिस्ट्रीशीट खोल दी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि राजस्थान हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट, 1953 के अनुसार आदतन अपराधी वही माना जाता है जिसे तीन अलग-अलग मामलों में दोषसिद्धि हुई हो। चूंकि उसके मामले में ऐसा नहीं था, इसलिए हिस्ट्रीशीट खोलने का कोई कानूनी आधार मौजूद नहीं था।

कोर्ट ने राजस्थान पुलिस नियम 1965 के नियम 4.9(2) का हवाला देते हुए कहा कि हिस्ट्रीशीट तभी खोली जा सकती है, जब किसी व्यक्ति के बारे में यह वाजिब विश्वास हो कि वह अपराध करने या उसमें सहायता करने का आदि है। मात्र FIR दर्ज होना उस विश्वास का आधार नहीं हो सकता।

न्यायालय ने कहा कि सामान्यतः वे लोग नज़रदारी रजिस्टर में शामिल किए जाते हैं, जिनका पुराना आपराधिक रिकॉर्ड हो घोषित अपराधी पूर्व-दोषी या ऐसे लोग जिन्हें अच्छे आचरण की शर्तों पर रखा गया हो।

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रता का हनन करती हुई मनमाने ढंग से हिस्ट्रीशीट खोले। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, इसलिए पुलिस का विवेक न्यायोचित तथा तर्कपूर्ण होना चाहिए।

इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ हिस्ट्रीशीट खोलते समय न तो कानून का पालन किया गया और न ही उसके खिलाफ कोई ठोस आधार था।

इस प्रकार, पुलिस अधीक्षक का आदेश अवैध घोषित करते हुए अदालत ने हिस्ट्रीशीट को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता का नाम तुरंत नज़रदारी रजिस्टर से हटाया जाए।

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