Order 41 Rule 27 CPC: अपील लंबित रहने पर अतिरिक्त साक्ष्य की अर्जी पर फैसला अंतिम सुनवाई में ही होगा : राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की Order 41 Rule 27 के तहत अपील के दौरान दाखिल की गई अतिरिक्त साक्ष्य लेने की अर्जी पर फैसला अपील की अंतिम सुनवाई के समय ही किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अर्जी को अपील की सुनवाई से पहले तय करना न्यायिक दृष्टि से उचित नहीं होगा।
मामला उस समय उठा, जब याचिकाकर्ता के खिलाफ किराया न्यायाधिकरण ने बेदखली का आदेश पारित किया था। इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई, जो विचाराधीन थी। अपील लंबित रहते हुए याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त साक्ष्य लेने की अर्जी दाखिल की। न्यायाधिकरण ने यह अर्जी अपील की अंतिम सुनवाई पर विचारार्थ सुरक्षित रखी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीपीसी की धारा 151 के तहत आवेदन देकर अनुरोध किया कि अपील के गुण-दोष पर विचार से पहले उसकी अर्जी का निपटारा किया जाए। हालांकि, न्यायाधिकरण ने इस आवेदन को भी खारिज कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।
सुनवाई के दौरान जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने सुप्रीम कोर्ट के परस्पर विरोधी आदेशों पर चर्चा की। वर्ष 2008 में दिए गए North Eastern Administration Gorakhpur बनाम भगवान के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त साक्ष्य की अर्जी पर पहले फैसला होना चाहिए। उसके बाद ही अपील पर विचार किया जाना चाहिए। इसके विपरीत वर्ष 2012 में दिए गए Union of India बनाम इब्राहिम उद्दीन एवं अन्य के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी अर्जी पर फैसला अपील की अंतिम सुनवाई के समय ही होना चाहिए। यदि इसे पहले तय किया जाए तो यह पूर्ण रूप से बिना विचार का उदाहरण माना जाएगा।
इस विरोधाभास को देखते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक और फैसले Mattulal बनाम राधे लाल (1974) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जब समान पीठ के दो परस्पर विरोधी फैसले हों तो बाद में दिया गया फैसला बाध्यकारी माना जाएगा, जब तक कि पहले का फैसला बड़ी पीठ द्वारा न दिया गया हो।
इसी सिद्धांत को आधार बनाते हुए हाईकोर्ट ने माना कि इब्राहिम उद्दीन का फैसला बाद का है और इसलिए बाध्यकारी है। इस प्रकार अदालत ने स्पष्ट किया कि Order 41 Rule 27 CPC के तहत दाखिल अतिरिक्त साक्ष्य की अर्जी पर विचार अपील की अंतिम सुनवाई में ही किया जाएगा।
अंततः हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और न्यायाधिकरण के आदेश को सही ठहराया।
केस टाइटल: शंकर लाल सैनी बनाम नगिना पाटोलिया एवं अन्य