3018 प्लॉट लॉटरी योजना में भ्रष्टाचार और सॉफ्टवेयर हेरफेर के आरोपों पर राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
राजस्थान हाईकोर्ट ने भीलवाड़ा शहरी सुधार न्यास (UIT) की 3018 आवासीय प्लॉट आवंटन योजना में गंभीर अनियमितताओं, सॉफ़्टवेयर हेरफेर और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस योजना में लगभग 17.6 करोड़ रुपये की आवेदन राशि जमा होने के बावजूद संपूर्ण आवंटन प्रक्रिया मनमानी, अपारदर्शी और नियम-विरुद्ध तरीके से संचालित की गई, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन हुआ।
याचिका में आरोप लगाया गया कि शुरुआत में आवेदन केवल ऑफलाइन मोड में ही आमंत्रित किए गए थे और आवेदन पुस्तिका में यह साफ तौर पर उल्लेख था कि पूरी प्रक्रिया ऑफलाइन ही संपन्न होगी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना या सार्वजनिक घोषणा के लॉटरी प्रक्रिया को ऑनलाइन मोड में बदल दिया, जिससे मूल शर्तों में अनुचित रूप से परिवर्तन हो गया।
सबसे गंभीर आरोप उस समय सामने आए, जब यह कहा गया कि ऑनलाइन लॉटरी के लिए SEED नामक एक ऐसा सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल किया गया जो न तो सत्यापित था, न ऑडिटेड और न ही किसी सक्षम प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित। याचिकाकर्ता के अनुसार इस तरह के असत्यापित और असुरक्षित सॉफ़्टवेयर का उपयोग सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 43A और 79 तथा आईटी नियम 2011 के नियम 8 का स्पष्ट उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि इतनी बड़ी योजना में ऐसे अनटेस्टेड सिस्टम का इस्तेमाल प्रशासनिक लापरवाही और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ठेस पहुंचाता है।
लॉटरी परिणामों पर भी सवाल उठाए गए। आरोप है कि जिन सफल आवेदकों की सूची प्रकाशित की गई, उसमें कई ऐसे सीरियल नंबर दिखाई दिए, जो वास्तविक आवेदनों की कुल संख्या से भी अधिक थे जिससे परिणामों में स्पष्ट हेरफेर का संदेह पैदा होता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि कई प्लॉट एक ही परिवार के सदस्यों को आवंटित किए गए और यहां तक कि UIT भीलवाड़ा के कुछ अधिकारियों के नाम भी सूची में सामने आए। ऐसा होना हितों के टकराव और प्रशासनिक निष्पक्षता के सिद्धांतों के विरुद्ध बताया गया।
याचिकाकर्ता ने इस पूरी प्रक्रिया को पद के दुरुपयोग, पक्षपात और भ्रष्टाचार का उदाहरण बताते हुए कहा कि इससे न केवल सार्वजनिक भरोसे को ठेस पहुंची है बल्कि आवंटन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लग गए। इस पर सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच, जिसमें डॉ. जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी शामिल हैं, ने मामले को 18 नवंबर 2025 की अगली तिथि पर सूचीबद्ध किया।