संविदा कर्मचारियों का लगातार काम करना स्थायी रोजगार के लिए कोई निहित अधिकार नहीं बनाता: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से संविदा के आधार पर काम पर रखे गए व्यक्तियों का सरकार द्वारा नियोजित होने में कोई निहित स्वार्थ नहीं है। न्यायालय ने इस स्थिति पर पहुंचने के लिए के.के. सुरेश और अन्य बनाम भारतीय खाद्य निगम के सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया।
इसके अलावा गणेश दिगंबर झांभरुंडकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले पर भी भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया कि लंबे समय तक सेवाएं प्रदान करने से संविदा कर्मचारियों को उनके पक्ष में रोजगार का निहित अधिकार प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलता।
न्यायालय ने कहा,
“हम याचिकाकर्ताओं के इस तर्क की सराहना करते हैं कि उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ हिस्सा उक्त कॉलेज के लिए दिया लेकिन जहां तक कानून का सवाल है, हमें नहीं लगता कि उनके निरंतर काम करने से उनके पक्ष में कोई कानूनी अधिकार पैदा हुआ, जिसे समाहित किया जा सके।”
जस्टिस समीर जैन की पीठ उन व्यक्तियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें राजस्थान सरकार ने प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से संविदा कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया। याचिका में न्यायालय से सरकार को याचिकाकर्ताओं को सभी लाभों के साथ सेवा में बहाल करने का निर्देश देने का आदेश मांगा गया।
न्यायालय इस तथ्य से सहमत था कि अनुबंध मुख्य रूप से सरकार और ठेकेदार/प्लेसमेंट एजेंसी के बीच हुआ। बाद वाले ने ही याचिकाकर्ताओं की सेवाएं लीं। यह देखा गया कि याचिकाकर्ता केवल एक तृतीय पक्ष थे। इस अनुबंध से अलग थे, जिसके संबंध में पक्षों के बीच अनुबंध की गोपनीयता मौजूद थी।
तदनुसार न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी, विशेष रूप से उपर्युक्त उदाहरणों के प्रकाश में।
केस टाइटल- अमिता सिंह और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।