संवेदनशीलता से निपटा जाए: आय के विवरण के अभाव में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता का मुआवज़ा अस्वीकार करना गलत- राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की मुआवज़े की याचिका इस तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसने अपने स्कूल की फीस आदि के भुगतान के लिए आय के स्रोत का विवरण प्रस्तुत नहीं किया।
जस्टिस अनूप कुमार ढ़ांड ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों को अदालतों द्वारा संवेदनशीलता के साथ निपटा जाना चाहिए। चूंकि दुष्कर्म एक अमानवीय अपराध है, इसलिए पीड़िता को सांत्वना के रूप में मुआवज़ा दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने दुष्कर्म को 'नारीत्व पर थोपी गई यातना का उच्चतम रूप' करार दिया। यह न केवल शारीरिक यातना देता है, बल्कि महिला के मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कल्याण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
कोर्ट ने कहा,
"दुष्कर्म को महिला को दिए गए सबसे बुनियादी मानव अधिकार यानी 'जीवन और गरिमा के अधिकार' के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध माना जाता है। यह केवल एक यौन अपराध नहीं है, बल्कि महिला को नीचा दिखाने और अपमानित करने के उद्देश्य से किया गया आक्रामक कार्य है। नाबालिग पीड़िता के साथ किए गए दुष्कर्म का अपराध अमानवीय कृत्य है और मानवीय गरिमा पर हमला है। इसलिए पीड़िता को सांत्वना के रूप में मुआवज़ा दिया जाना चाहिए।"
याचिकाकर्ता एक दुष्कर्म पीड़िता ने POCSO कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने राजस्थान पीड़ित मुआवज़ा योजना, 2011 और POCSO नियम 2020 के नियम 9 के तहत मुआवज़े की उसकी याचिका खारिज की थी। आरोपी को दोषी ठहराया गया और उसे 20 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई।
मुआवज़े की याचिका को स्पेशल जज, POCSO कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि पीड़िता ने अपने स्कूल की फीस आदि के भुगतान के लिए आय के स्रोत का विवरण या कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया।
हाईकोर्ट ने इस आधार को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह मुआवज़े की याचिका खारिज करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। योजना के तहत यह देखना आवश्यक है कि क्या पीड़िता के साथ दुष्कर्म या यौन हमला हुआ है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ितशास्त्र का आधुनिक दृष्टिकोण यह स्वीकार करता है कि अपराध पीड़ित को पर्याप्त मुआवज़ा, पुनर्वास और क्षतिपूर्ति का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि केवल अपराधियों को दंडित करने से पीड़ित और उसके परिवार को ज़्यादा सांत्वना नहीं मिलती है बल्कि पर्याप्त मौद्रिक मुआवज़ा ही गलत और क्षति को ठीक कर सकता है।
हाईकोर्ट ने POCSO कोर्ट का आदेश रद्द और अलग कर दिया। कोर्ट ने मामले को ट्रायल कोर्ट के पास वापस भेजते हुए निर्देश दिया कि वह नियम 9 (2020 के नियम) और 2011 की योजना के तहत याचिकाकर्ता के आवेदन पर नए सिरे से विचार करे और आदेश प्राप्त होने के छह सप्ताह के भीतर नया आदेश पारित करे।
वैकल्पिक राहत: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़िता वैकल्पिक रूप से संबंधित जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव के समक्ष भी 2011 की योजना के अनुसार सीधे आवेदन प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पीड़िता दो अलग-अलग आवेदन (POCSO जज और DLSA सचिव के समक्ष) एक साथ प्रस्तुत नहीं कर सकती है।