सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में पति की नसबंदी कराने के बाद भी पत्नी गर्भवती हो गई: हाईकोर्ट ने मुआवजा का आदेश खारिज किया, कहा- अस्पताल की गलती नहीं

Update: 2025-04-18 04:47 GMT
सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में पति की नसबंदी कराने के बाद भी पत्नी गर्भवती हो गई: हाईकोर्ट ने मुआवजा का आदेश खारिज किया, कहा- अस्पताल की गलती नहीं

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नसबंदी ऑपरेशन की नाकामी के लिए दंपत्ति को मुआवजा दिए जाने का आदेश खारिज कर दिया। दंपत्ति का मामला यह था कि सरकारी अस्पताल में पति द्वारा नसबंदी का ऑपरेशन करवाने के लिए बाद भी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक लड़की को जन्म भी दिया।

बता दें कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए हरियाणा सरकार ने 1986 में भुगतान की पेशकश करके नसबंदी ऑपरेशन को प्रोत्साहित किया था।

जस्टिस निधि गुप्ता ने दम्पति को एक लाख रुपए का मुआवजा देने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि राम सिंह की उक्त नसबंदी असफल रही, लेकिन निचली अपीलीय अदालत को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए था कि वादीगण ने इस बात से इनकार नहीं किया कि डॉ. आर.के. गोयल ने ऐसे हजारों ऑपरेशन किए हैं। आंकड़े बताते हैं कि नसबंदी के असफल होने की संभावना बहुत कम है, जिसकी दर 0.3% से 9% तक है। वादीगण इसी दुर्लभ श्रेणी में आते हैं।"

अदालत ने कहा कि इसका अर्थ यह नहीं है कि डॉक्टर की ओर से कोई लापरवाही हुई है। निचली अपीलीय अदालत ने यह भी नहीं माना कि ऑपरेशन से पहले दम्पति को जारी किए गए प्रमाण पत्र के अनुसार यह स्पष्ट किया गया कि ऑपरेशन के असफल होने की स्थिति में प्रतिवादियों पर कोई दायित्व नहीं है।

1986 में राम सिंह ने नसबंदी कराने के लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में आवेदन किया, उनका परिवार नियोजन के लिए ऑपरेशन किया गया और ऑपरेशन कराने के लिए सिंह को पैसे दिए गए।

सिंह को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया कि वह अगले तीन महीनों तक संभोग न करें और कंडोम का उपयोग करें तथा तीन महीने बाद वीर्य की जांच करवाएं।

यह प्रस्तुत किया गया कि सिंह की पत्नी गर्भवती हो गई। इसके बाद वह सिविल अस्पताल गया और अपनी जांच करवाई। जांच के बाद उसे बताया गया कि नसबंदी ऑपरेशन विफल हो गया था। तदनुसार, उन्होंने अपने 5वें बच्चे और 4वीं बेटी को जन्म दिया "जो उनके परिवार में अवांछित और अप्रिय सदस्य है।"

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

"रिकॉर्ड से पता चलता है कि वादी कोई सबूत पेश करने में विफल रहे हैं कि उनकी ओर से कोई लापरवाही नहीं थी और/या उन्होंने डॉक्टर के उपरोक्त निर्देशों का पालन किया था, अर्थात वादी राम सिंह ने ऑपरेशन के तीन महीने बाद अपना वीर्य टेस्ट करवाया था।"

न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सिंह ऑपरेशन के तीन महीने बाद अपने वीर्य परीक्षण के लिए सिविल अस्पताल गए।

जस्टिस गुप्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक अन्य कारक जिस पर विचार करने की आवश्यकता है, वह यह है कि वादी द्वारा यह कहा गया कि यह अवांछित गर्भावस्था थी। हालांकि, इस बात का कोई व्यवहार्य कारण नहीं दिया गया कि महिला द्वारा उक्त गर्भावस्था को समाप्त क्यों नहीं किया गया।

उन्होंने कहा,

"रिकॉर्ड से पता चलता है कि वादी द्वारा यह दलील दी गई कि शारदा रानी गर्भावस्था को समाप्त करने में असमर्थ थी, क्योंकि वह कमजोर थी। हालांकि, वादी द्वारा उक्त तर्क को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं लाया गया। यहां तक ​​कि शारदा रानी ने भी कभी गर्भावस्था को समाप्त करने का प्रयास नहीं किया।"

पीठ ने पाया कि इस तर्क को साबित करने के लिए कोई रिकॉर्ड नहीं है कि सिंह की पत्नी प्रेग्नेंसी की मेडिकल टर्मिनेशन के लिए फिट नहीं थी।

जज ने कहा कि अपीलीय न्यायालय ने केवल यह नोट किया कि नसबंदी ऑपरेशन 09.08.1986 को किया गया था। 5वां बच्चा 02.07.1988 को पैदा हुआ, यानी ऑपरेशन के लगभग 2 साल बाद। डॉ. आर.के. गोयल ने माना कि राम सिंह का यह नसबंदी ऑपरेशन असफल रहा लेकिन उन्होंने उपरोक्त पहलुओं पर गौर नहीं किया।

उपर्युक्त के मद्देनजर, हरियाणा सरकार की अपील स्वीकार की गई और मुआवजा देने का आदेश रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल: हरियाणा राज्य और अन्य बनाम राम सिंह और अन्य

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