महज ग्रेजुएट होने के कारण पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-07-01 13:27 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को केवल इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह ग्रेजुएट है और कमाने में सक्षम है। खासकर तब जब वह लाभकारी नौकरी में न हो।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा,

"केवल इस तथ्य से कि प्रतिवादी/पत्नी ग्रेजुएट है, इसका यह अर्थ नहीं है कि उसे भरण-पोषण के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जो उसे वैधानिक प्रावधान के माध्यम से प्रदान किया गया है, जब तक कि CrPC की धारा 125 के तहत उल्लिखित आधारों के तहत भरण-पोषण मांगने के अधिकार को कम नहीं किया जा सकता या जब उसकी आय पति की तुलना में बहुत अधिक है। यह पाया जा सकता है कि वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है तो उस स्थिति में वह भरण-पोषण के लिए पात्र नहीं हो सकती है।"

न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि, वर्तमान मामले में केवल इस तथ्य से कि पत्नी ग्रेजुएट है, लेकिन उसके पास कोई नौकरी नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि उसे भरण-पोषण से वंचित किया जा सकता है, जबकि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। साथ ही वह एक 6 वर्षीय नाबालिग लड़की की देखभाल और संरक्षण भी कर रही है, जिसके लिए भरण-पोषण के रूप में केवल 5,000 रुपये प्रति माह की राशि तय की गई है।

इसमें कहा गया,

"किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि भरण-पोषण की उपरोक्त राशि अधिक है। इस न्यायालय को लुधियाना के फैमिली कोर्ट के एडिशनल प्रिंसिपल जज द्वारा पारित आदेश में कोई अवैधता या विकृति नहीं दिखती है।"

ये टिप्पणियां एक पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसने फैमिली कोर्ट, लुधियाना द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत CrPC की धारा 125 के तहत याचिका दायर की गई। प्रतिवादियों अर्थात पत्नी और नाबालिग बेटी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ भरण-पोषण अनुदान के लिए दायर की गई याचिका स्वीकार कर ली गई और कुल 14,000 रुपये प्रति माह (नाबालिग बेटी के लिए 5000 रुपये और पत्नी के लिए 9000 रुपये) भरण-पोषण निर्धारित किया गया।

दंपति ने 2018 में विवाह किया था और 2019 में विवाहेतर संबंध से एक लड़की का जन्म हुआ, जो पत्नी के संरक्षण में है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि अंतरिम भरण-पोषण पर विचार करने के समय उनकी आय 34,033 रुपये प्रति माह थी और वह पिरामल कैपिटल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में संग्रह शाखा प्रबंधक के रूप में काम कर रहे हैं। साथ ही उनके पास अन्य खर्च भी हैं, जिसमें 25,560 रुपये प्रति वर्ष का प्रीमियम और कार लोन के लिए 9,463 रुपये प्रति माह ईएमआई का भुगतान करना शामिल है।

उन्होंने कहा कि उपरोक्त के अलावा, उसके पास अन्य दायित्व भी हैं, विशेष रूप से अपने वृद्ध दादा-दादी की देखभाल और कई अन्य व्यय, इसलिए वह प्रति माह 14,000 रुपये भरण-पोषण के रूप में देने की स्थिति में नहीं है।

इस तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत याचिका पर विचार करने और निर्णय लेने के उद्देश्य से पति पर दायित्व लगाया जाना चाहिए, जो न केवल एक अधिनियम के तहत वैधानिक दायित्व है, बल्कि पति की अपनी पत्नी और उसके नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करने की सामाजिक, आर्थिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है।

जस्टिस पुरी ने स्पष्ट किया कि केवल यह तथ्य कि याचिकाकर्ता के पास अन्य व्यय भी हैं, महत्वपूर्ण नहीं है और अप्रासंगिक है और दायित्व कानून के अनुसार तय किया गया। इसलिए याचिकाकर्ता के वकील का ऐसा तर्क टिकने योग्य नहीं है।

जज ने इस आधार पर भरण-पोषण आदेश रद्द करने पर विचार करने से भी इनकार कर दिया कि पत्नी काम करने और कमाने में सक्षम है, क्योंकि वह शिक्षित महिला है। उसके पास बी.ए. पीजीडीसीए की योग्यता है।

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज की और आदेश से 3 महीने की अवधि के भीतर फैमिली कोर्ट, लुधियाना के समक्ष उपरोक्त लागत जमा करने का निर्देश दिया।

Title: AXXXXX v. XXXXXX

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