ट्रायल कोर्ट ने हत्या के मामले में अलग-अलग सुनवाई के आदेश का रिव्यू करके कई आरोपियों के खिलाफ एक ही फैसला सुनाया, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि खारिज की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में कई आरोपियों के खिलाफ दोषसिद्धि खारिज कर दी। मामले में ट्रायल कोर्ट ने अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने के बाद एक साझा फैसला सुनाया था, जिसमें उन पर अलग-अलग मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा,
"तत्कालीन विद्वान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रेवाड़ी की ओर से दो जुलाई, 2001 को पारित आदेश के अनुसार, सह-अभियुक्त दवेंद्र को मुकदमे से अलग करने का आदेश दिया गया था, जैसा कि अन्य सात सह-अभियुक्तों पर दर्ज किया गया था, बल्कि इसे चुनौती नहीं दी गई, जिससे इसने बाध्यकारी और निर्णायक प्रभाव प्राप्त किया। परिणामस्वरूप, उक्त आदेश की रिव्यू करने की अनुमति नहीं थी, भले ही विद्वान लोक अभियोजक द्वारा दायर आवेदन पर बचाव पक्ष के वकील द्वारा कोई विरोध नहीं किया गया था। इसके विपरीत, विद्वान ट्रायल जज ने उक्त आवेदन को स्वीकार करते समय, जिस पर विद्वान बचाव पक्ष के वकील द्वारा कोई विरोध नहीं किया गया था, दो जुलाई 2001 के पहले के आदेश की अनुचित रूप से समीक्षा की है, जिसके अनुसार राज्य बनाम दवेंद्र नामक सत्र मामले में मुकदमे को राज्य बनाम अवतार सिंह और अन्य नामक सत्र मामले के तहत दर्ज मुकदमे से अलग कर दिया गया था।"
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपने आदेश का रिव्यू करना, जिसमें अभियुक्तों पर अलग से मुकदमा चलाने के निर्देश दिए गए थे, "पूरी तरह से अनुचित" है।
ये टिप्पणियां एक हत्या के मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपीलों की सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें अभियुक्त व्यक्तियों करतार सिंह, सुबे सिंह, फूल सिंह, समर सिंह और देवेन्द्र को 302 के साथ 149 आईपीसी तथा आईपीसी और शस्त्र अधिनियम के अन्य प्रावधानों के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
पीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस ठाकुर ने कहा कि एक अभियुक्त के मुकदमे से प्राप्त साक्ष्य को "अनुचित रूप से समेकित" किया गया था और दूसरे के मुकदमे में लागू किया गया था।
एटी माईदीन और अन्य बनाम सहायक आयुक्त, सीमा शुल्क विभाग में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि किसी भी अभियुक्त के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे में दर्ज साक्ष्य केवल उस अभियुक्त की दोषीता तक ही सीमित है और इसका सह-अभियुक्त पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जिस पर एक अलग मुकदमे में दर्ज साक्ष्य के आधार पर मुकदमा चलाया गया है, हालांकि उसने एक ही अपराध किया है।
सजा के आदेश को रद्द करते हुए न्यायालय ने मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया और अलग-अलग केस नंबर देकर आरोपियों पर अलग-अलग मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अलग-अलग और विशिष्ट सुनवाई के बाद अलग-अलग निर्णय सुनाए जाने चाहिए।
केस टाइटल: दवेंदर बनाम हरियाणा राज्य [संबंधित मामलों सहित]
साइटेशन: 2025 लाइवलॉ (पीएच) 05