संदिग्ध आपूर्तिकर्ताओं का अलग-अलग राज्यों से होना कार्यवाही को राज्य से केंद्र में स्थानांतरित करने का आधार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि केवल यह जानकारी होना कि संदिग्ध आपूर्तिकर्ता उसी राज्य में स्थित नहीं हैं, कार्यवाही को राज्य से केंद्र में स्थानांतरित करने का आधार नहीं होगा।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजय वशिष्ठ की पीठ ने कहा कि “केवल इसलिए कि डीजीजीआई के पास अन्य फर्मों द्वारा आईटीसी के समान धोखाधड़ीपूर्ण लाभ से संबंधित जानकारी है, जो उस फर्म से संबंधित हो सकती हैं, जिसके खिलाफ राज्य प्राधिकरण द्वारा एचजीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू की गई है, यह मानने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगा कि राज्य जीएसटी प्राधिकरण कार्यवाही का संचालन करने या उस फर्म की दोषसिद्धि की जांच करने में सक्षम नहीं होगा, जिसके खिलाफ एचजीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू की गई है। केवल इसलिए कि अन्य फर्म भी हो सकती हैं, जिनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई है, संयुक्त कार्यवाही की कोई अवधारणा नहीं है।”
हरियाणा माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 74(1) में प्रावधान है कि यदि किसी उचित अधिकारी को संदेह है कि कर का भुगतान नहीं किया गया है, कम भुगतान किया गया है, गलत तरीके से वापस किया गया है, या धोखाधड़ी या दमन के कारण इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत तरीके से दावा किया गया है, तो उसे संबंधित व्यक्ति को नोटिस जारी करना चाहिए, स्पष्टीकरण मांगना चाहिए और ब्याज और दंड के साथ निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने की मांग करनी चाहिए।
हरियाणा माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 6(2)(बी) में प्रावधान है कि यदि केंद्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत किसी उचित अधिकारी ने किसी विषय वस्तु पर कार्यवाही शुरू की है, तो उस मामले पर उसी अधिनियम के तहत उचित अधिकारी द्वारा कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
पीठ ने कहा कि जीएसटी अधिनियम के तहत आईटीसी के धोखाधड़ीपूर्ण लाभ से संबंधित जांच के लिए पूरी कार्यवाही एक विशेष फर्म से संबंधित है जो हरियाणा राज्य में पंजीकृत है। यदि कोई अन्य फर्म है जो धोखाधड़ीपूर्ण आईटीसी का लाभ उठाती पाई गई है, तो केंद्र सरकार के अधिकारियों को उस फर्म के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोका जा सकता है।
इस प्रकार, किसी अन्य फर्म के खिलाफ स्वतंत्र कार्रवाई राज्य कर अधिकारियों द्वारा वर्तमान फर्म के खिलाफ पहले से शुरू की गई कार्यवाही में बाधा नहीं डालेगी। न ही इसे कार्यवाही की कोई जटिलता या बहुलता पैदा करने वाला कहा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
“अधिनियम की धारा 6(2)(बी) में प्रयुक्त शब्द 'विषय वस्तु' का अर्थ होगा 'कार्यवाही की प्रकृति'। इस प्रकार, इसका अर्थ होगा धोखाधड़ीपूर्ण तरीकों से इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत लाभ उठाने के लिए शुरू की गई कार्यवाही। इस प्रकार, यदि राज्य ने उसी विषय वस्तु के लिए 22.07.2019 तक की अवधि के लिए अधिनियम की धारा 74 के तहत नोटिस जारी करके कार्यवाही शुरू कर दी है, तो डीजीजीआई को 28.07.2019 से 20.01.2022 तक की अवधि के लिए धोखाधड़ी के माध्यम से इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए कार्यवाही शुरू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यदि ऐसी कार्रवाई की अनुमति दी जाती है, तो यह अधिनियम की धारा 6(2)(बी) में निहित प्रावधानों के विपरीत होगी"।
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि कार्यवाही पहले ही राज्य के अधिकारियों यानी शाहबाद में आबकारी और कराधान अधिकारी द्वारा शुरू की जा चुकी है। समन और वारंट पहले ही जारी किए जा चुके हैं और पूरा रिकॉर्ड उनके पास उपलब्ध है। जैसा कि रिकॉर्ड में आया है, डीजीजीआई की कार्रवाई या राज्य कर अधिकारी की कार्रवाई को बरकरार रखने का कोई अवसर नहीं है, जो उसके समक्ष लंबित करदाता से संबंधित कार्यवाही को स्थानांतरित करता है।
पीठ ने रिट याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि उचित अधिकारी, अर्थात् आबकारी एवं कराधान अधिकारी, शाहबाद को कार्यवाही को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है।
केस टाइटलः मेसर्स स्टालवार्ट अलॉयज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य
केस नंबर: सीडब्ल्यूपी नंबर 1661/2022 (ओएंडएम)