पंजाब राज्य चुनाव आयोग अधिनियम | निर्वाचन क्षेत्र में मकान होने मात्र से व्यक्ति सामान्य निवासी नहीं होताः हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पंजाब चुनाव आयोग अधिनियम के अनुसार कोई व्यक्ति केवल मकान के मालिक होने अथवा उस पर कब्जा होने के आधार पर सामान्य निवासी नहीं हो सकता।
न्यायालय ने कहा,
“यद्यपि वैधानिक शब्द सामान्य निवासी का अर्थ वैधानिक रूप से व्यक्त किया गया लेकिन कोई भी मतदाता किसी निर्वाचन क्षेत्र अथवा संबंधित राजस्व संपदा में केवल इस आधार पर सामान्य निवासी नहीं हो सकता कि वह उस निर्वाचन क्षेत्र/राजस्व संपदा में मकान का मालिक है अथवा उस पर उसका कब्जा है।”
न्यायालय राज्य चुनाव आयोग के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने उसे तहसील का मतदाता मानने की याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह कुआ डायरी, तहसील पटरां, जिला पटियाला का निवासी है। उसका नाम परिसीमन की प्रक्रिया के पश्चात ही इस स्थान की मतदाता सूची में विधिवत रूप से दर्ज हुआ।
वर्ष 2018 में याचिकाकर्ता द्वारा आपत्ति उठाई गई कि कुआ डायरी में कुछ वोट वास्तव में साहिबजादा अजीत सिंह नगर के हैं।
हाईकोर्ट के आदेश से आधिकारिक प्रतिवादियों को प्रतिनिधित्व तय करने का निर्देश दिया गया। इस पर विचार करने पर विधानसभा चुनाव में उनके वोट गोविंदपुरा पिंड में दर्शाए गए।
बाद में वार्डबंदी के बाद उन्हें जी.पी. दातुल के दूसरे वार्ड में दर्शाया गया। एस.डी.एम. के आदेश पर हल्का पटवारी रिपोर्ट के आधार पर जी.पी. दातुल से वोटों को शाहीबजादा अजीत नगर में स्थानांतरित कर दिया गया, उन्हें उस गांव का "साधारण निवासी" दिखाया गया।
इसके खिलाफ अपील दायर की गई, जिसे राज्य चुनाव याचिका द्वारा खारिज कर दिया गया। इस खारिजगी को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसके तहत इसे राज्य चुनाव आयोग (SEC) को वापस भेज दिया गया, जिससे इस पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जा सके।
SEC ने इसे खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता को निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी से संपर्क करने की आवश्यकता है।
इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई कोर्ट ने 4 सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय लेने का आदेश दिया। SEC द्वारा गठित समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमे उसे कुआ डायरी का निवासी दिखाया गया। रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया गया और बर्खास्तगी का विवादित आदेश पारित कर दिया गया।
बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई। दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि निजी प्रतिवादियों को मतदाता के रूप में सूचीबद्ध किया जाना था जिससे वे संबंधित ग्राम पंचायत के संबंधित लोकतांत्रिक कार्यालयों के लिए होने वाले चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें साथ ही उन्हें राज्य विधानसभा और केंद्रीय संसद के लिए अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।
पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब एक पात्र मतदाता को शुरू में सूक्ष्म स्तर के निर्वाचन क्षेत्र में सूचीबद्ध किया जाता है तो उसे संसदीय और विधानसभा चुनावों में अपने वोट के अधिकार का प्रयोग करने का विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है।
ग्राम पंचायत चुनावों में मताधिकार का प्रयोग करने का हकदार हो जाता है। चूंकि मतदान पहले ही संपन्न हो चुका है। इसलिए न्यायालय ने कहा कि विवादित आदेश में किसी और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
टाइटल- गुरमेज बनाम पंजाब राज्य