क्या आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी या आर्मी पब्लिक स्कूल के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं? पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने मामला बड़ी पीठ को भेजा
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेजा कि क्या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आर्मी वेलफेयर सोसाइटी या आर्मी पब्लिक स्कूल के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य होगी।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा,
"भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 का प्रावधान हाइकोर्ट को भाग III द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकार के प्रवर्तन या किसी अन्य उद्देश्य के लिए किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण, जिसमें कोई सरकार भी शामिल है, उसको रिट आदेश या निर्देश जारी करने का अधिकार देती है।"
उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह न्यायालय इस बात पर विचार करता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य और उसके प्राधिकारियों की परिभाषा इस न्यायालय की शक्तियों को सीमित नहीं करेगी, जो आर्मी पब्लिक स्कूल जैसी संस्था के खिलाफ रिट जारी करने के लिए है जो सार्वजनिक कार्य कर रही है और बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त है।
वहीं, न्यायालय ने एक ही ताकत और प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण के विभिन्न बेंचों द्वारा व्यक्त किए गए बिल्कुल विपरीत, विरोधाभासी और परस्पर विरोधी विचारों को देखते हुए निम्नलिखित मुद्दे को बड़ी बेंच को संदर्भित करना उचित समझा।
बेंच ने कहा,
"क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका कर्मचारियों/शिक्षकों/पीड़ित व्यक्तियों द्वारा आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी (AWES) या आर्मी पब्लिक स्कूल के खिलाफ उनके अधिकारों और दावों की पुष्टि के लिए बनाए रखी जा सकती है?"
यह घटनाक्रम आर्मी पब्लिक स्कूल के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया है। याचिकाकर्ता ने अंडी मुक्ता सद्गुरु श्री मुक्ताजी वंदस स्वामी सुवर्ण जयंती महोत्सव स्मारक ट्रस्ट एवं अन्य बनाम वी.आर. रुदानी एवं अन्य 1989 (2) एससीसी 691 का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि कोई भी व्यक्ति या प्राधिकरण, जो शिक्षा प्रदान करने जैसे सार्वजनिक कर्तव्य का पालन करता है और इस प्रकार सामान्य रूप से समाज और भारत के लोगों के प्रति सकारात्मक दायित्व रखता है, वह रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी होगा।
वकील ने कहा कि आर्मी पब्लिक स्कूल जैसे शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त हैं। इसके निर्देशों द्वारा शासित हैं, क्योंकि यह राज्य के कार्य करता है। इसलिए यह रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी होगा।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें हाइकोर्ट ने प्रश्न का अलग-अलग उत्तर दिया था।
न्यायालय ने रीना पंटा बनाम भारत संघ एवं अन्य का हवाला दिया, जिसमें हाइकोर्ट की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि आर्मी पब्लिक स्कूल अनुच्छेद 12 के अर्थ में प्राधिकरण हैं और हाइकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी हैं।
हेम चंद बनाम भारत संघ और अन्य, 2003 (4) एसएलआर 787 में खंडपीठ ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या सेना कल्याण शिक्षा सोसायटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य का एक साधन है या नहीं?
यह माना गया कि सेना कल्याण शिक्षा सोसायटी सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत रजिस्टर्ड है। सरकार सोसायटी के प्रबंधन में बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं रखती है। यह ऐसी कंपनी नहीं है, जो कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 617 के अंतर्गत आती हो।
न्यायालय ने नोट किया कि आर्मी पब्लिक स्कूलों के संबंध में विभिन्न न्यायालयों ने अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाए हैं। बिनीता पटनायक पाधी बनाम भारत संघ और अन्य 2021 (2) ईएससी 556 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि RTE Act के तहत सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करने वाले निजी गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक स्कूल भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के अधीन हैं और आर्मी स्कूलों को रिट क्षेत्राधिकार के अधीन माना गया है।
पंजाब राज्य बनाम देवंस मॉडर्न ब्रेवरीज लिमिटेड [2004] में हाइकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय पर भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया:
“न्यायिक अनुशासन की परिकल्पना यह है कि समन्वय पीठ पहले के समन्वय पीठ के निर्णय का पालन करे। यदि समन्वय पीठ किसी अन्य पीठ द्वारा प्रतिपादित कानून के सिद्धांतों से सहमत नहीं है तो मामले को केवल एक बड़ी पीठ को भेजा जा सकता है।”
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने मामले को बड़ी पीठ को संदर्भित किया और रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह मामले को एक्टिंग चीफ जस्टिस के समक्ष विचारार्थ उपयुक्त बड़ी पीठ गठित करने के लिए रखे।
केस टाइटल- सिमरन कौर बनाम भारत संघ और अन्य