हिंदू परिवार में हिंदू बच्चे को गोद लेने का काम रजिस्टर्ड डीड के बिना भी किया जा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-02-14 10:15 GMT
हिंदू परिवार में हिंदू बच्चे को गोद लेने का काम रजिस्टर्ड डीड के बिना भी किया जा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम के तहत हिंदू परिवार में हिंदू बच्चे को गोद लेने का काम राजिटर्ड डीड के बिना भी किया जा सकता है।

यह मामला रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित है, जिसमें एक दत्तक पुत्री को इसलिए नियुक्ति नहीं दी गई, क्योंकि कक्षा 10वीं के प्रमाण पत्र में दत्तक माता-पिता के नाम के बजाय उसके जैविक माता-पिता का नाम दर्शाया गया।

न्यायालय ने संघ की दलील खारिज की कि 1997 में जन्मी आवेदक को कानूनी रूप से गोद लिया हुआ नहीं माना जा सकता, क्योंकि 2017 में (जब वह वयस्क थी) रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज में कहा गया कि वास्तविक गोद लेने की प्रक्रिया 2010 में हुई।

जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई. मेहता की खंडपीठ ने कहा,

"हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (अधिनियम) में हिंदू परिवार में हिंदू बच्चे को गोद लेने के तरीके और विधियां बताई गई। गोद लेना रजिस्टर्ड डीड के माध्यम से या उसके बिना भी हो सकता है।"

न्यायालय ने कहा कि गोद लेने और देने का कार्य दोनों पक्षों, अर्थात् जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता द्वारा किया जाना चाहिए। एक गोद लेना, जो पहले से ही एक प्रथागत तरीके से या किसी ऐसे लेन-देन के माध्यम से किया गया। बाद में लिखित रूप में दर्ज किया जा सकता है। उसके बाद गोद लेने का दस्तावेज पंजीकृत किया जा सकता है।

केंद्र सरकार ने कैट के उस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की, जिसके तहत सरकार को मृतक कर्मचारी की दत्तक पुत्री के मामले पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए विचार करने का निर्देश दिया गया।

केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि निष्पादित दत्तक-पत्र को कानूनी और वैध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसे 02.06.2017 को पंजीकृत किया गया, जब लड़की की आयु 20 वर्ष से अधिक थी।

न्यायालय ने पाया कि जब कौर कक्षा 10वीं में थी तब कोई पंजीकृत दत्तक-पत्र नहीं था। इसलिए यह स्वाभाविक है कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के प्रमाण-पत्र में आवेदक सुखप्रीत कौर के दत्तक माता-पिता के बजाय मूल माता-पिता के नाम का उल्लेख किया गया।

खंडपीठ ने कहा,

"यह सर्वविदित है कि जहां तक स्कूल शिक्षा बोर्ड का संबंध है, वे प्रमाण-पत्र में उल्लेखित बच्चे के वास्तविक माता-पिता को ही मान्यता देंगे और पिता और माता के नाम केवल पंजीकृत दत्तक-पत्र प्रस्तुत करने पर ही बदलेंगे।"

खंडपीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस शर्मा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक बार दत्तक-पत्र पंजीकृत हो जाने के बाद यह माना जाएगा कि वैध दत्तक-पत्र हुआ तथा निश्चित रूप से खंडन का अधिकार भी है। ऐसी धारणा के संबंध में प्रावधान अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत दिए गए।

न्यायालय ने संघ की इस दलील को खारिज कर दिया कि कौर का दत्तक-पत्र कानून के अनुसार नहीं किया गया, क्योंकि दत्तक-पत्र के पंजीकरण के दिन वह वयस्क हो गई।

खंडपीठ ने कहा,

"आवेदक-प्रतिवादी नंबर 1 (सुखप्रीत कौर) की जन्म तिथि 23.03.1997 है। पंजीकृत दत्तक-पत्र में दर्शाया गया कि दत्तक-पत्र 12.01.2010 को हुआ, लेकिन पंजीकरण नहीं हो सका।"

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दत्तक पुत्री की अनुकंपा नियुक्ति को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि दत्तक पुत्री का नाम कक्षा 10वीं के प्रमाण-पत्र में अंकित नहीं है।

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने संघ की याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: भारत संघ और अन्य बनाम सुखप्रीत कौर और अन्य

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