पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गैंगस्टरों को मोबाइल फोन सप्लाई करने के आरोप में गिरफ्तार अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

Update: 2024-11-20 06:47 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र जेल के अंदर गैंगस्टरों को मोबाइल फोन सप्लाई करने के लिए उनसे रिश्वत लेने के आरोपी जेल अधीक्षक को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया। रजिस्टर में प्रविष्टि किए बिना हार्ड कोर अपराधियों से मुलाकात की अनुमति दी। आरोप है कि जेल में बंद गैंगस्टरों और हार्ड कोर अपराधियों ने अवैध शराब बनाने की साजिश रची थी।

अदालत ने इस दलील खारिज की कि जेल अधीक्षक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-A के प्रावधानों का पालन किए बिना जांच दर्ज की गई, क्योंकि पुलिस अधिकारियों को PC Act के तहत किसी लोक सेवक द्वारा किए गए कथित अपराध की पूर्व स्वीकृति के बिना जांच करने का अधिकार नहीं है, यदि कथित अपराध किसी लोक सेवक द्वारा आधिकारिक कार्यों के निर्वहन में की गई किसी सिफारिश या लिए गए निर्णय से संबंधित है।

जस्टिस एन.एस. शेखावत ने कहा,

"PC Act की धारा 17-A का उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है न कि उन सरकारी कर्मचारियों को बचाना और उनका संरक्षण करना जिन पर जेल में बंद कुख्यात अपराधियों/गैंगस्टरों/अवैध शराब कारोबारियों के साथ साजिश रचने का आरोप है।"

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पर गैंगस्टर शमशेर सिंह उर्फ ​​मोनू राणा को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने और अन्य कुख्यात अपराधियों से मिलने की अनुमति देने का गंभीर आरोप है, जो नकली शराब बनाने में सफल रहे, जिससे 20 निर्दोष लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से बीमार हो गए।

कोर्ट ने कहा कि इस घटना ने मृतकों के परिवारों को तोड़ दिया, जिससे उनके द्वारा नकली शराब पीने के कारण उनके पूरे जीवन के लिए अपूरणीय क्षति हुई।

न्यायाधीश ने राज्य के वकील से भी सहमति जताई कि याचिकाकर्ता की भूमिका, अपनाई गई कार्यप्रणाली, अवैध रिश्वत की वसूली, अन्य जेल कर्मचारियों के साथ-साथ हरियाणा जेल विभाग के सीरियल अधिकारी के साथ उसके संबंध को उजागर करने के लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ करना बेहद जरूरी है।

अदालत कुरुक्षेत्र जिला जेल में जेल अधीक्षक के पद पर तैनात सोम नाथ जगत की गिरफ्तारी से पहले जमानत पर सुनवाई कर रही थी। जगत के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 और 8, जेल अधिनियम, 1894 की धारा 42 और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

याचिकाकर्ता के सीनियर वकील ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में PC Act की धारा 17-A के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया, क्योंकि पुलिस अधिकारियों को PC Act के तहत किसी लोक सेवक द्वारा किए गए कथित अपराध में पूर्व अनुमोदन के बिना जांच या पूछताछ करने का अधिकार नहीं है, यदि कथित अपराध किसी लोक सेवक द्वारा आधिकारिक कार्यों या कर्तव्यों के निर्वहन में की गई किसी सिफारिश या लिए गए निर्णय से संबंधित है।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों को खारिज किया और कहा कि PC Act में धारा 17-A को शामिल करने का उद्देश्य ईमानदार लोक सेवक को उनके आधिकारिक कार्यों या कर्तव्यों के सद्भावनापूर्ण उद्देश्य से लिए गए निर्णयों या किए गए कार्यों के संबंध में जांच या जांच के माध्यम से उत्पीड़न से बचाना था।

जस्टिस शेखावत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जांच के दौरान, कई जेल अधिकारियों/अन्य गवाहों के बयान CrPC की धारा 164 के साथ-साथ CrPC की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए। पुलिस जगत के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाने में सफल रही है।

न्यायालय ने कहा कि जिला जेल, कुरुक्षेत्र के अंदर चल रहे पूरे रैकेट और अपराधियों तथा जेल अधिकारियों के बीच हुई बातचीत को जानने के लिए हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता होगी।

इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि जगत जांच में शामिल नहीं हुआ। उसने श्री बालाजी अरोयागम अस्पताल, प्राइवेट लिमिटेड, कुरुक्षेत्र द्वारा कथित रूप से जारी किए गए मेडिकल प्रमाण पत्र को फर्जी बनाया।

अदालत ने कहा,

"उसके कदाचार ने उसे अग्रिम जमानत की विवेकाधीन राहत के लिए अयोग्य बना दिया और याचिका इस न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने योग्य है।"

केस टाइटल: सोम नाथ जगत बनाम हरियाणा राज्य-

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