अन्य कर्मचारियों को समान लाभ देने के बावजूद किसी कर्मचारी की सेवा को नियमित न करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-09-18 07:34 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अन्य कर्मचारियों को समान लाभ देने के बावजूद किसी कर्मचारी की सेवा को नियमित न करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा।

जस्टिस नमित कुमार ने कहा,

"एक बार जब समान स्थिति वाले व्यक्तियों की सेवाओं को प्रतिवादी विभाग द्वारा नियमित कर दिया जाता है तो याचिकाकर्ता को उक्त लाभ देने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यह भेदभावपूर्ण होगा और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा।"

कोर्ट राजेश कुमार की सेवा को नियमित करने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 1995 में PWD विभाग में माली-कम-चौकीदार के रूप में शामिल हुए। कुमार को 1997 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। 2001 में लेबर ट्रिब्यूनल द्वारा बकाया वेतन के साथ बहाल कर दिया गया। हालांकि विभाग द्वारा इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और बकाया वेतन की वसूली पर रोक लगाने का आदेश दिया गया।

इसके बाद याचिकाकर्ता को 2003 में ड्यूटी पर आने की अनुमति दी गई और अंत में उक्त रिट याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी गई, जिसके तहत एकल पीठ ने माना कि चूंकि याचिकाकर्ता ने 01.04.1997 से 03.02.2004 तक काम नहीं किया। इसलिए वह पूर्ण बकाया वेतन का हकदार नहीं है। उसे बकाया वेतन का 25% प्रदान किया गया।

हरियाणा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 309 के प्रावधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 2003 में एक अधिसूचना जारी की, जिसमें तदर्थ/अनुबंध/दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित किया गया, जिन्होंने 30.09.2003 को 03 वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी भले ही 6 महीने का ब्रेक रहा हो। अधिसूचना में आगे कहा गया कि यदि ऐसा ब्रेक कर्मचारी के कारण नहीं है तो 31.01.1996 से पहले नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा, बशर्ते वे अन्य शर्तें पूरी करते हों।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि समान स्थिति वाले कर्मचारियों को नियमित किया गया और पात्रता मानदंड पूरा करने के बावजूद याचिकाकर्ता को समान लाभ नहीं दिया गया।

शिकायत का जवाब देते हुए विभाग ने कहा,

"चूंकि याचिकाकर्ता को 24.12.2003 को सेवा में वापस ले लिया गया। हरियाणा राज्य द्वारा दिनांक 02.02.2001 के अवार्ड के खिलाफ दायर (रिट याचिका) हाईकोर्ट में लंबित है। इसलिए याचिकाकर्ता की सेवाओं को नियमित नहीं किया जा सकता।"

प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने पाया कि कुमार ने लगभग 29 वर्षों तक विभाग में सेवा की है। उनका मामला उनकी सेवा को नियमित करने की सरकारी नीति के अंतर्गत आता है।

अजमेर सिंह बनाम हरियाणा राज्य और अन्य [2002(1) आरएसजे 479] का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि एक बार जब किसी कर्मचारी को निरंतरता के साथ सेवा में बहाल कर दिया जाता है तो उसे सभी उद्देश्यों के लिए ड्यूटी पर माना जाता है। इस तरह की कथित बहाली के आधार पर मिलने वाला लाभ उसे इस तरह दिया जाना चाहिए जैसे कि वह वास्तव में उस तारीख से ड्यूटी पर था, जब उसकी सेवाएं अवैध रूप से समाप्त कर दी गईं।

न्यायालय ने उषाबेन जोशी बनाम भारत संघ और अन्य [2024 आईएनएससी 624] का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि समान पद पर रखे गए कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। 30 साल तक सेवा करने वाले श्रमिकों को नियमित करने का निर्देश दिया।

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि कुमार के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता की सेवाओं को नीति के अनुसार 01.10.2003 से नियमित करने का निर्देश दिया सभी परिणामी लाभों के साथ और इसे इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को जारी किया जाएगा।"

केस टाइटल- राजेश कुमार बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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