पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुग्राम भूमि पर बार-बार दायर याचिकाओं पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

Update: 2024-11-26 06:07 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुग्राम के सेक्टर 57 के विकास के लिए अधिग्रहित भूमि को चुनौती देने वाले एक वादी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

इस तथ्य के बावजूद कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को मुकदमे के पहले दौर में उचित प्राधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी थी, याचिकाकर्ता ने दूसरे निर्देशों के लिए एसएलपी दायर की और फिर हाईकोर्ट में फिर से रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने बाद में पाया कि जिस नीति के आधार पर मामला दायर किया गया उसे याचिकाकर्ता ने एक अन्य याचिका में चुनौती दी, जो लंबित थी।

जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस मीनाक्षी आई. मेहता की खंडपीठ ने कहा,

"यह उचित प्रक्रिया के दुरुपयोग और सुगम आवागमन तथा एनसीआर क्षेत्र के कारण न्याय तक बेरोकटोक पहुंच का उत्कृष्ट मामला है, जिससे इस न्यायालय को अनावश्यक मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ रहा है।"

न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक 14.09.2018 की नीति रद्द करने के लिए रिट याचिका दायर की गई, जिसके आधार पर पहले समन्वय पीठ के समक्ष प्रार्थना करके और फिर उक्त प्रार्थना को पुनर्जीवित करने के लिए इसे सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर पूरे मुकदमे को जीवित रखा गया।

ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर आवेदन पर निर्णय लेने की मांग करने वाली रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसमें कहा गया कि यह तथ्य कि भूमि मालिकों ने पहले से ही अधिग्रहित भूमि पर कुछ संरचनाएं बनाई, जो राज्य सरकार में निहित हैं। अपने आप में अधिग्रहित भूमि को गैर-अधिसूचित करने का कोई कारण नहीं हो सकता। ऐसा तभी किया जा सकता है, जब राज्य सरकार पूरी तरह से संतुष्ट हो कि भूमि विकास के उद्देश्य के लिए अव्यवहार्य या अनावश्यक हो गई और विशेष रूप से जिस कारण से इसे अधिग्रहित किया गया।

वर्तमान मामले में न्यायालय ने नोट किया कि राज्य सरकार ने प्रस्तुत किया कि व्यवहार्यता और अनिवार्यता पर विचार किया गया, जिस अधिग्रहित भूमि को मुक्त करने की मांग की गई, वह नियोजित विकास को प्रभावित कर रही है।

यह देखते हुए कि इसी मुद्दे पर याचिका का पहले ही निपटारा हो चुका है। याचिकाकर्ता ने उस नीति को भी चुनौती दी है, जिसके आधार पर पूरे मुकदमे को पहले समन्वय पीठ के समक्ष प्रार्थना करके और फिर उक्त प्रार्थना को पुनर्जीवित करने के लिए इसे सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर जीवित रखा गया, न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

केस टाइटल: पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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