अग्रिम जमानत याचिका में न्यायालय पुलिस से आरोपी को गिरफ्तार न करने के इरादे की जानकारी देने के लिए कह सकता है, जिससे बाद में स्वतंत्रता का हनन न किया जा सके: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2024-05-03 10:16 GMT

भ्रष्टाचार के मामले में जांचकर्ता द्वारा आरोपी को गिरफ्तार करने का प्रस्ताव करने की स्थिति में पंद्रह दिन पहले अग्रिम सूचना मांगने वाली अनोखी प्रार्थना से निपटते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि यदि गिरफ्तारी से पहले जमानत याचिका दायर की जाती है और जांचकर्ता यह रुख अपनाते हैं कि उनका गिरफ्तारी करने का इरादा नहीं है तो न्यायालय उन्हें आरोपी को अपने इरादे के बारे में सूचित करने का निर्देश दे सकता है, जिससे बाद में वे "किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ छल न कर सकें"।

जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,

"इस तरह की अनूठी प्रार्थना के लिए उल्लेखित कारण यह है कि वर्तमान तिथि तक याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी की आशंका नहीं है, लेकिन यदि उसकी आशंका सच साबित होती है तो इससे याचिकाकर्ता को अनावश्यक रूप से परेशान होना पड़ सकता है।"

न्यायाधीश ने कहा,

"ऐसा दृष्टिकोण स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता कानूनी सलाह ले सकता है और यदि उसे थोड़ी भी आशंका है तो वह हमेशा धारा 438 सीआरपीसी का सहारा ले सकता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि याचिकाकर्ता धारा 438 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर करता है और जांचकर्ता यह रुख अपनाता है कि वे उसे गिरफ्तार करने का प्रस्ताव नहीं रखते हैं तो वास्तव में ऐसी स्थिति में यह न्यायालय जांचकर्ता को निर्देश दे सकता है कि वह उसे गिरफ्तार न करने के अपने इरादे के बारे में सूचित करे, जिससे वे बाद में व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ छल न कर सकें और शुरू में यह रुख अपनाकर कि वे गिरफ्तार करने का इरादा नहीं रखते हैंष गुप्त रूप से काम न कर सकें और ऐसी याचिका वापस लेने के बाद उनकी स्वतंत्रता को कम करने के लिए आधी रात को उनके दरवाजे खटखटा सकें।”

गोपी चंद चौधरी पर धारा 120-बी, 406, 418, 467, 468, 471 आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1)(सी) और 13(1)(डी) के तहत भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया, जिन्होंने धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर कर मांग की कि अगर जांचकर्ता एफआईआर में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने का प्रस्ताव करता है तो पंद्रह दिन पहले इसकी सूचना दी जाए।

राज्य के वकील ने कहा कि उन्हें कोई औपचारिक जवाब दाखिल करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मौजूदा याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने दलील दी कि न्यायालय ने पदम कुमार बंसल बनाम हरियाणा राज्य [सीआरएम-एम-15824-2023] में भी इसी तरह की राहत दी। उन्होंने कहा कि उक्त आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि अगर जांचकर्ता याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने का प्रस्ताव करता है तो याचिकाकर्ता को एक सप्ताह पहले इसकी सूचना दी जानी चाहिए।

हालांकि, राज्य के वकील ने बताया कि पदम कुमार बंसल की याचिका एफआईआर ही रद्द करने के लिए दायर की गई और जब कोर्ट स्थगन देने के लिए इच्छुक नहीं है तो याचिकाकर्ता के अनुरोध पर, जो गिरफ्तारी की आशंका जता रहा है, ऐसा आदेश पारित किया गया और उक्त आदेश भी अगली तारीख तक ही वैध है इस तरह उक्त आदेश स्थायी नहीं है।

प्रस्तुतियों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा,

"वर्तमान याचिकाकर्ता को धारा 438 सीआरपीसी के तहत सीधे इस कोर्ट में आने की अनुमति होगी, यदि वह ऐसा चाहता है।"

इसने आगे कहा कि याचिकाकर्ता को यह स्पष्ट करना होगा कि वह इस संबंध में किसी भी पूर्वाग्रह का दावा नहीं करेगा और यह दावा नहीं करेगा कि उसने इस न्यायालय के समवर्ती क्षेत्राधिकार का उपयोग करके एक अवसर खो दिया, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार भी है।

उपरोक्त के आलोक में याचिका का निपटारा किया गया।

केस टाइटल- गोपी चंद चौधरी बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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