प्रलोभन के प्रति संवेदनशील कर्मचारियों को सरकारी नौकरी नहीं दी जानी चाहिए, किसी भी तरह की सहानुभूति लोकतंत्र की सफलता को नष्ट करती है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने जाली दस्तावेजों के आधार पर म्यूटेशन दर्ज करने के लिए रिश्वत लेने के आरोपी पटवारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया। न्यायालय ने कहा कि प्रलोभन के प्रति संवेदनशील कर्मचारियों को सरकारी नौकरी नहीं दी जानी चाहिए और ऐसे कर्मचारियों के साथ किसी भी तरह की सहानुभूति लोकतंत्र की सफलता को नष्ट करती है।
जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,
"सरकारी खजाने से वेतन पाने वाले अधिकारी को जब कोई कार्यकारी कार्य करने की जिम्मेदारी दी जाती है तो वह संप्रभु द्वारा अपनी शक्तियों का हस्तांतरण करने के समान ही होता है और ऐसे अधिकारी अपने कर्तव्यों के निष्पादन में दृढ़ निश्चयी होते हैं और वे उन्हें कानूनी ईमानदारी और कुशलता से तभी पूरा कर सकते हैं, जब वे ईमानदार, कुशल और मेधावी हों। जो लोग मजबूत नैतिक दिशा-निर्देश रखते हैं, वे प्रलोभन के कारण पीछे नहीं हटते और वे अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर व्यवस्था के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाते हैं। अधिक धन, अधिक शक्ति के लिए प्रलोभन या अतृप्त प्यास एक छद्म शैतान है।"
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि व्यक्ति केवल अपनी पसंद से विनाश के मार्ग पर प्रवेश करता है।
इसने कहा कि एक बार ऐसा व्यक्ति भ्रष्टाचार का रास्ता चुन लेता है तो वह खुद को एक जाल में फंसा लेता है, जिससे वह बच नहीं पाता।
न्यायालय ने कहा कि जो कर्मचारी प्रलोभन के प्रति संवेदनशील होते हैं और जीवन के नैतिक मानकों पर टिके नहीं रहते उन्हें सरकारी नौकरियों से दूर रहना चाहिए और यहां तक कि सरकार को भी उन्हें संवेदनशील पदों से दूर रखना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा,
"ऐसे कर्मचारी के साथ कोई भी सहानुभूति लोकतंत्र की सफलता को नष्ट कर देती है, क्योंकि सफल और जीवंत लोकतंत्र अपने मेधावी, ईमानदार और कुशल मानव संसाधनों और भ्रष्टाचार, कट्टरता, सामान्यता और चाटुकारिता की अनुपस्थिति का परिणाम है।"
ये टिप्पणियां पटवारी गुरविंदर सिंह द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका के जवाब में आईं, जिन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 7-ए और आईपीसी की धारा 420, 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें कथित तौर पर 27,50,000 रुपये की रिश्वत की पेशकश स्वीकार करके जाली दस्तावेजों के आधार पर म्यूटेशन दर्ज करने के लिए सहमत होना है, जिसमें से शिकायतकर्ता ने कथित तौर पर 5,40,000 रुपये से अधिक की राशि का भुगतान किया- लेकिन याचिकाकर्ता ने जरूरी काम नहीं किया, जिसके कारण शिकायत दर्ज की गई।
दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील खारिज कर दी कि यह सुनियोजित जालसाजी का मामला है। शिकायतकर्ता तथा उसके पिता ने निर्दोष सरकारी कर्मचारियों को बहला-फुसलाकर इस तरह की चालें चलीं।
न्यायालय ने आगे कहा कि वीडियो रिकॉर्डिंग एफएसएल के तहत सबूत के अधीन है, लेकिन जमानत के उद्देश्य से, जो राज्य के अनुसार छेड़छाड़ रहित है और न तो डीपफेक है और न ही संपादित संस्करण है। वीडियो देखने से भी पता चलता है कि फ्रेम अनुक्रम में हैं और आवाज निरंतर है। जो बताता है कि वीडियो क्लिप वास्तविक प्रतीत होती है।
इसने नोट किया कि वीडियो में याचिकाकर्ता ने पत्रकार को काम करने की अपनी अनिच्छा के बारे में अपना रुख बताया। यह भी बताया कि वह कभी काम नहीं करना चाहता, लेकिन शिकायतकर्ता इतना चतुर है कि उन्होंने उससे दोस्ती कर ली, उसके घर आना-जाना शुरू कर दिया, उसके पिता से दोस्ती कर ली, उसके बच्चों से निकटता बना ली और उपहार भेजना शुरू कर दिया।
जस्टिस चितकारा ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है कि केवल सबसे निचले स्तर के कर्मचारी को ही अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, बल्कि यह सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से लागू होता है।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- गुरविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य