बच्चे को माता-पिता दोनों का प्यार पाने का मौलिक अधिकार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बच्‍चे की कस्टडी मां को सौंपी, पिता को मुलाकात की अनुमति दी

Update: 2024-09-16 07:57 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में एक पिता को 8 महीने के बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंपने का निर्देश दिया। साथ ही पिता को बच्चे से मिलने का अधिकार दिया। न्यायालय ने कहा कि, "बच्चे के कल्याण और सर्वोत्तम हित में यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि बच्चा पिता के स्नेह और संगति से वंचित न रहे।"

जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा, "जब माता-पिता के बीच मतभेद होता है, तो बच्चे की भलाई सर्वोपरि चिंता बनी रहनी चाहिए। न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को एक ऐसी वस्तु के रूप में नहीं देखा जाए जिसे आगे-पीछे किया जाए, बल्कि उसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाए जिसकी स्थिरता और सुरक्षा को सावधानीपूर्वक संरक्षित किया जाना चाहिए।"

न्यायालय ने कहा कि एक बच्चे को, विशेष रूप से कम उम्र में, माता-पिता दोनों के प्यार, देखभाल और सुरक्षा का मौलिक अधिकार है। "यह न केवल बच्चे के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि इसे एक बुनियादी मानव अधिकार के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।"

जज ने चेतावनी देते हुए कहा कि, "न्यायालय को प्रत्येक माता-पिता द्वारा किए गए दावों का किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह और उद्देश्य से मुक्त होकर मूल्यांकन करने में सावधानी बरतनी चाहिए तथा बच्चे के सर्वोत्तम हित पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।"

न्यायाधीश ने कहा कि न्यायालय का लक्ष्य संघर्ष को समाप्त करना तथा उपयुक्त वातावरण का आकलन करना होना चाहिए, जहां बच्चे की समग्र भलाई सुरक्षित हो। ये टिप्पणियां एक मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसमें पिता से अपने 8 महीने के बच्चे की कथित अवैध कस्‍टडी की मांग की गई थी।

मां ने आरोप लगाया कि वैवाहिक कलह के कारण मां को बुरी तरह पीटा गया तथा अपने माता-पिता के घर जाते समय उसे बच्चे को अपने साथ ले जाने की अनुमति दी गई।

याचिका में कहा गया कि महिला ने अपने माता-पिता के साथ एमएलआर की एक प्रति के साथ स्थानीय पुलिस से संपर्क किया था तथा अनुरोध किया था कि बच्चे की कस्‍टडी पति से लेकर याचिकाकर्ता को सौंप दी जाए, जिसे मां पाल रही है। हालांकि, याचिकाकर्ता को कोई पुलिस सहायता प्रदान नहीं की गई।

प्रस्तुतियों को सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि पक्षकार मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र के माध्यम से अपने बेटे की कस्‍टडी के संबंध में कोई सौहार्दपूर्ण समझौता नहीं कर पाए हैं।

यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य और अन्य 2020 (3) एससीसी 67 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर यह रेखांकित करने के लिए भरोसा किया गया कि, "जब बच्चा माता या पिता में किसी एक की कस्टडी में हो, तो बच्चे की कस्‍टडी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बनाए रखा जा सकता है, खासकर, अगर यह बच्चे के सर्वोत्तम हित में हो।"

जस्टिस सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्राथमिक और सर्वोपरि विचार हमेशा बच्चे के सर्वोत्तम हित के साथ होता है, जिसमें उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक भलाई शामिल होती है।

न्यायालय ने कहा, "कस्‍टडी की लड़ाई में बच्चे अक्सर अपने माता-पिता के संघर्ष का अनजाने में शिकार बन जाते हैं। जब विवाद अत्यधिक कटु हो जाता है, तो प्रत्येक माता-पिता दूसरे को नकारात्मक रूप से चित्रित कर सकते हैं, कभी-कभी मामूली रूप से या लाभ प्राप्त करने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करके।"

कोर्ट ने कहा कि प्रतिकूल दृष्टिकोण संघर्ष के बीच में फंसे बच्चे की महत्वपूर्ण भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक चिंता पैदा कर सकता है।

"मुख्य उद्देश्य बच्चे के जीवन में व्यवधान को कम करना और दोनों माता-पिता के साथ निरंतरता सुनिश्चित करना है, जब तक कि एक माता-पिता के संपर्क को सीमित करने या अस्वीकार करने के लिए दुर्व्यवहार या गंभीर उपेक्षा के सबूत जैसे बाध्यकारी कारण न हों।"

उपरोक्त के आलोक में, न्यायालय ने कहा कि बच्चा 08 महीने की कोमल आयु का है, इस न्यायालय का विचार है कि सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने तक, बच्चे की अभिरक्षा याचिकाकर्ता-मां के पास रहेगी। हालांकि, कोर्ट ने मां को निर्देश दिया कि वह बच्चे को उसके पैतृक घर में जाने दे "यह सुनिश्चित करते हुए कि बच्चा पिता के स्नेह और संगति से वंचित न रहे।"

केस टाइटल: XXXX बनाम पंजाब राज्य और अन्य

साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (पी.एच.) 253

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