हाथ से मैला ढोने की प्रथा राज्य द्वारा स्वीकृत जातिवाद, यह गहरे तक जड़ें जमाए भेदभाव की याद दिलाती है: मद्रास उच्च हाइकोर्ट ने इसके उन्मूलन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

Update: 2024-05-01 08:10 GMT

आज के समय में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने पर दुख जताते हुए मद्रास हाइकोर्ट ने हाथ से मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए।

चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि यद्यपि टेक्नोलॉजी के अभाव के युग में हाथ से मैला ढोने की प्रथा की आवश्यकता हो सकती है लेकिन आज के तकनीकी विकास के युग में इस प्रथा को जारी रखना राज्य द्वारा स्वीकृत जातिवाद के अलावा और कुछ नहीं है, जो संवैधानिक लोकाचार के विरुद्ध है।

उन्होंने कहा,

“अतीत में तकनीक के अभाव में हाथ से मैला उठाने की ज़रूरत रही होगी। 2024 में जो स्थिति है, वह अलग है। एक भी इंसान को सीवर में नहीं भेजा जाना चाहिए। ऐसा करना संवैधानिक मूल्यों के पूर्ण उल्लंघन में राज्य द्वारा स्वीकृत जातिवाद से कम नहीं है। मशीनरी उपलब्ध होने के बावजूद किसी व्यक्ति पर उसके स्वास्थ्य सम्मान और उसके परिवार के खिलाफ़ काम थोपना बंद किया जाना चाहिए।”

अदालत ने कहा कि धन की कमी इस प्रथा को जारी रखने का औचित्य नहीं हो सकती और न्यायालय मौलिक अधिकारों का रक्षक और गारंटर होने के नाते मूकदर्शक नहीं रह सकता। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों की पूरी तरह अवहेलना करते हुए उत्पीड़ित वर्ग को गरीबी अस्वस्थता और अपमान के जीवन में पीढ़ी दर पीढ़ी अभिशप्त होने की अनुमति नहीं दे सकता।

अदालत सफाई कर्मचारी आंदोलन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य में हाथ से मैला उठाने की प्रथा को खत्म करने और निषेध अधिनियम को लागू करने की मांग की गई।

न्यायालय ने कहा कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार नागरिक समाज संगठनों नियोक्ताओं और समुदायों सहित सभी हितधारकों के सम्मिलित प्रयास की आवश्यकता है।

न्यायालय ने कहा कि मानवाधिकार कानून के तहत सभी व्यक्तियों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करना कानूनी दायित्व है, चाहे उनकी जाति, जेंडर और सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। न्यायालय ने खेद व्यक्त किया कि हाथ से मैला ढोना समाज के लिए अभिशाप है, जो मानवाधिकारों और हाशिए पर पड़े समुदायों की गरिमा के विरुद्ध हिंसा को बढ़ावा देता है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि हाथ से मैला ढोना हमारे समाज में व्याप्त गहरी असमानताओं और भेदभाव की एक कठोर याद दिलाता है।

न्यायालय ने कहा,

"हाथ से मैला ढोने की प्रथा का जारी रहना हमारे समाज में व्याप्त गहरी असमानताओं और भेदभाव की एक कठोर याद दिलाता है, जो हाशिए पर पड़े समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले गरीबी, उत्पीड़न और बहिष्कार के चक्र को जारी रखता है।

हम अभूतपूर्व विकास का दावा करते हैं, लेकिन फिर भी एक समुदाय मौजूद ,है जो सेप्टिक टैंक और मैनहोल में घुसकर अपना जीवन यापन करता है।"

मैला ढोने से जुड़े शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों तथा समुदाय को हाशिए पर रखे जाने की ओर इशारा करते हुए न्यायालय ने मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए राज्य और निगमों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश जारी किए।

न्यायालय ने राज्य को मैला ढोने के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने राज्य को सफाई कार्य के लिए व्यक्तियों का उपयोग करने की स्थिति में सुरक्षात्मक और सुरक्षा उपकरण प्रदान करने का भी निर्देश दिया।

न्यायालय ने सफाई कार्यों को पूरी तरह से मशीनीकृत बनाने और मैला ढोने के खतरों के बारे में श्रमिकों को उचित जानकारी प्रदान करने का भी सुझाव दिया। न्यायालय ने राज्य को मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 को सख्ती से लागू करने और उसका अनुपालन करने को कहा।

न्यायालय ने मैला ढोने के काम के कारण होने वाली मौतों और स्थायी दिव्यांगता के लिए मुआवजे को बढ़ाने और मृतक मैला ढोने वाले श्रमिकों के परिवार के सदस्यों को अनुकंपा नियुक्ति देने की योजना बनाने को भी कहा। हाथ से मैला ढोने के काम में लगे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश देने के अलावा न्यायालय ने कर्मचारियों के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य जांच का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि 2026 तक चरणबद्ध तरीके से हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए।

केस टाइटल- सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ और अन्य

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