एमपी हाईकोर्ट ने अवैध रेत खनन के मामले में दोषी व्यक्ति की सजा कम करने से इनकार किया, पर्यावरणीय प्रभाव का दिया हवाला

Update: 2025-05-14 08:08 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का हवाला देते हुए आरोपी की सजा कम करने से इनकार कर दिया, जिसे नदी से अवैध रूप से रेत की चोरी (खनन) के लिए दोषी ठहराया गया था।

जस्टिस अचल कुमार पालीवाल ने अपने आदेश में कहा,

“सजा के प्रश्न पर इस न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील के तर्कों पर विचार किया है। यह सही है कि याचिकाकर्ता का समान प्रकृति का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और उसने 1 वर्ष की सजा में से 4 माह की सजा पहले ही काट ली है। वर्तमान याचिकाकर्ता के विरुद्ध जो अपराध सिद्ध हुआ है, वह यह है कि उसने किसी नदी से रेत का खनन कर उसकी चोरी की। याचिकाकर्ता द्वारा किए गए अपराध के पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय को सजा के संबंध में कोई सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता नहीं है। अतः ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा, जिसे अपीलीय अदालत ने भी बनाए रखा है, उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।”

मामले की तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ता को बिना किसी लाइसेंस के ट्रैक्टर-ट्रॉली में रेत का परिवहन करते हुए पकड़ा गया था। ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत दोनों ने उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 379 (चोरी) के तहत दोषी ठहराया और सजा सुनाई। इसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसमें उसने दोषमुक्त किए जाने की प्रार्थना की। उसने आग्रह किया कि उसे केवल पहले से काटी गई सजा तक ही सीमित सजा दी जाए।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने IPC की धारा 379 के तहत सजा देकर गलती की। उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष का गवाह-1 (PW-1) विरोधी हो गया और उसने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया। इसके अलावा, गवाह-5 (PW-5) ने मुख्य परीक्षा में अभियोजन का समर्थन किया, लेकिन क्रॉस एग्जामिनेशन में उसने पूरी कहानी से इनकार कर दिया। PW-3 और PW-4 की गवाही का हवाला देते हुए यह भी तर्क दिया गया कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर सका कि रेत कहां से निकाली गई थी। साथ ही कोई ऐसा आदेश भी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया, जिससे पता चले कि कलेक्टर ने संबंधित क्षेत्र में रेत खनन पर रोक लगाई थी।

वकील ने यह भी तर्क दिया कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता और यह सिद्ध नहीं हुआ कि याचिकाकर्ता के पास जो रेत थी, वह अवैध रूप से निकाली गई थी। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता पहले ही 4 महीने से अधिक की सजा काट चुका है और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। अतः उसे IPC की धारा 379 के तहत दोषमुक्त किया जाए या केवल पहले से काटी गई सजा के आधार पर ही दंडित किया जाए।

वहीं, राज्य की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि मामले की परिस्थितियों में याचिकाकर्ता को केवल पहले से भुगती गई सजा के आधार पर राहत नहीं दी जा सकती और ट्रायल कोर्ट ने उसे उचित रूप से दोषी ठहराया।

रिकॉर्ड पर पुनर्विचार करने के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि PW-1 वास्तव में विरोधी हो गया और उसने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया। PW-5 ने भी क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान अभियोजन पक्ष की कहानी को नकार दिया। लेकिन गवाह PW-4 की जिरह के दौरान भी उसकी गवाही को अविश्वसनीय ठहराने लायक कुछ खास सामने नहीं आया।

कोर्ट ने यह भी माना कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे यह लगे कि याचिकाकर्ता को झूठा फंसाया गया।

कोर्ट ने कहा,

“इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि वह ट्रैक्टर-ट्रॉली में जो रेत ले जा रहा था, उसके संबंध में उसके पास कोई वैध दस्तावेज थे। याचिकाकर्ता यह सिद्ध नहीं कर सका कि रेत कहीं से भी बिना लाइसेंस के निकाली जा सकती है या इसके लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती।”

अतः हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत का निर्णय बरकरार रखा।

सजा के मुद्दे पर न्यायालय ने अपराध के पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता की सजा में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: लक्ष्मण बनाम मध्य प्रदेश राज्य, आपराधिक पुनर्विचार याचिका संख्या 720/2025

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