पेंशन लाभ के लिए एक वर्ष की सेवा पूरी करना पर्याप्त: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ब्याज सहित बकाया राशि देने का आदेश दिया

Update: 2024-10-19 06:02 GMT

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की पीठ ने रिटायरमेंट कर्मचारियों से संबंधित कई रिट याचिकाओं पर सुनवाई की जिन्होंने रिटायरमेंट से पहले वार्षिक वेतन वृद्धि देने की मांग की थी।

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें राज्य को निर्देश दिया गया कि वे रिटायरमेंट वर्ष के 30 जून या 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले कर्मचारियों को बकाया और ब्याज सहित वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान करें।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता रिटायर कर्मचारी या ऐसे कर्मचारियों के कानूनी उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने रिटायरमेंट से पहले एक वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी लेकिन उन्हें वार्षिक वेतन वृद्धि नहीं दी गई, जो आमतौर पर 1 जुलाई या 1 जनवरी को देय होती है।

राज्य ने सटीक रिटायरमेंट तिथि के बारे में तकनीकी पहलुओं का हवाला देते हुए वेतन वृद्धि से इनकार किया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि एक वर्ष की सेवा पूरी करने पर उन्हें स्थापित कानून के तहत वेतन वृद्धि का अधिकार है। इनकार करने से उन्हें संबंधित पेंशन लाभ से वंचित होना पड़ा।

मामले में दिए गए तर्क

याचिकाकर्ताओं ने एचआर KPTCL बनाम CP मुंडिनामणि (2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 401) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि वेतन वृद्धि प्राप्त करने का अधिकार तब प्राप्त होता है, जब कोई सरकारी कर्मचारी अच्छे आचरण के साथ सेवा की अपेक्षित अवधि पूरी करता ह और यह अगले दिन देय हो जाता है।

याचिकाकर्ताओं ने मध्य प्रदेश वित्त विभाग द्वारा 15.03.2024 को जारी सर्कुलर का भी हवाला दिया, जिसमें विभागों को 30 जून या 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले कर्मचारियों को वार्षिक वेतन वृद्धि देने का निर्देश दिया गया, बशर्ते कि वेतन वृद्धि अगले दिन देय हो।

राज्य ने अपने वकील के माध्यम से प्रस्तुत किया कि मुद्दा समीक्षाधीन है। मामलों पर कार्रवाई की जा रही है। राज्य ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्ताओं ने रिटायरमेंट से पहले अपनी एक वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी, लेकिन यह तर्क देने की कोशिश की कि कानूनी मुद्दा अभी भी जांच के दायरे में है।

न्यायालय का तर्क

सबसे पहले न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं का तर्क स्वीकार किया, जिसमें मुंदिनामणि में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि सेवा के पूरे वर्ष के दौरान अर्जित वार्षिक वेतन वृद्धि को केवल वेतन वृद्धि की नियत तिथि की पूर्व संध्या पर कर्मचारी की रिटायरमेंट के कारण नहीं रोका जाना चाहिए। न्यायालय ने स्वीकार किया कि पेंशन और वेतन वृद्धि के अधिकार आपस में जुड़े हुए हैं और वेतन वृद्धि से इनकार करने से रिटायरमेंट के बाद के लाभों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

दूसरे न्यायालय ने रुशीभाई जगदीशचंद्र पाठक बनाम भावनगर नगर निगम (2022 एससीसी ऑनलाइन एससी 641) के फैसले की प्रयोज्यता पर चर्चा की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने विलंबित याचिकाओं के लिए बकाया राशि को तीन साल तक सीमित कर दिया। ऐसे मामलों में जहां कर्मचारियों ने समय पर याचिका दायर की मुंडिनमणि के फैसले ने अनिवार्य किया कि उन्हें वेतन वृद्धि की नियत तिथि से पूर्ण बकाया राशि मिलनी चाहिए। न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम एम. सिद्धराज में दिनांक 06.09.2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी प्रकाश डाला, जिसमें वेतन वृद्धि और पेंशन वृद्धि की प्रभावी तिथि को स्पष्ट किया गया था।

रिट याचिका दायर करने वाले कर्मचारियों के लिए यह निर्णय रिस जुडिकाटा के रूप में कार्य करेगा, जिससे एक वर्ष की वेतन वृद्धि के आधार पर बकाया राशि का भुगतान करना अनिवार्य हो जाएगा। अंत में न्यायालय ने कार्यान्वयन में देरी से संबंधित किसी भी तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि लाभों को तुरंत संसाधित किया जाना चाहिए। इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य को याचिकाकर्ताओं को उनकी रिटायरमेंट तिथियों के आधार पर 1 जुलाई या 1 जनवरी तक देय वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान करनी चाहिए।

1 मई 2023 से 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ बकाया राशि का भुगतान किया जाना था। राज्य को छह सप्ताह के भीतर भुगतान की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया गया, जिससे एम. सिद्धराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।

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