फर्जी मुठभेड़ मामले में दो पुलिसकर्मियों को मिली अग्रिम जमानत, कोर्ट ने जांच पर उठाए सवाल

Update: 2025-09-20 07:09 GMT

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 2009 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दो पुलिसकर्मियों को अग्रिम जमानत दी। इस मामले में वांछित अपराधी को मृत घोषित कर दिया गया था, जबकि 2012 में वह जिंदा पाया गया था।

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों ने आरोपी पुलिसकर्मी अनिल पाटीदार का नाम उस व्यक्ति के रूप में नहीं लिया, जिसने उन पर वांछित अपराधी बंसीलाल गुर्जर के रूप में शव की गलत पहचान करने का दबाव बनाया था। पीठ ने यह भी पाया कि दूसरा आरोपी पुलिसकर्मी, मुख्तार रशीद कुरैशी अन्य पुलिस स्टेशन में तैनात था और उसे मौके पर केवल बुलाए जाने पर ही वह गया था।

अदालत ने इस बात पर हैरानी जताई कि केस डायरी में टी.आई. परशुराम सिंह परमार का नाम नहीं है, जबकि गवाहों ने उन्हीं का नाम गलत बयान देने के लिए दबाव डालने वाले व्यक्ति के रूप में लिया था। अदालत ने यह भी नोट किया कि स्वयं बंसीलाल गुर्जर ने बताया कि टी.आई. परमार ने उसे सब कुछ संभाल लेने और पुलिस द्वारा उसकी तलाश नहीं किए जाने का आश्वासन दिया था।

यह मामला 8 फरवरी, 2009 को बंसीलाल गुर्जर की कथित मुठभेड़ से शुरू हुआ, जिसमें एक अज्ञात व्यक्ति की हत्या कर दी गई। CBI ने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों ने अज्ञात व्यक्ति की हत्या करके फर्जी मुठभेड़ की साजिश रची ताकि बंसीलाल को बचाया जा सके। CBI जांच के दौरान, गवाहों और परिवार के सदस्यों ने भी अपने बयान बदल दिए और कहा कि उन्होंने पुलिस के दबाव में शव की गलत पहचान की।

अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से टी.आई. परशुराम सिंह परमार के इर्द-गिर्द घूमता है और किसी भी गवाह ने अनिल पाटीदार को गलत पहचान के लिए सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया। साथ ही कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि पाटीदार 2014 से सीबीआई के समक्ष उपलब्ध थे और उन्होंने जांच से बचने का कोई प्रयास नहीं किया।

इन्हीं आधारों पर अदालत ने दोनों पुलिसकर्मियों की अग्रिम जमानत की याचिका स्वीकार कर ली।

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