हैबियस कॉर्पस केवल विदेशी अदालत के आदेश को लागू करने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि हैबियस कॉर्पस की असाधारण शक्ति केवल उन मामलों में प्रयोग की जा सकती है, जहां किसी बच्चे को माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से कस्टडी में रखा गया हो। हालांकि, यह शक्ति केवल विदेशी अदालत के आदेश को लागू कराने के लिए नहीं इस्तेमाल की जा सकती।
मामले में पिता ने कोर्ट का रुख किया और आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने उनकी बेटी को उसके हिरासत से अवैध रूप से हटा लिया। पिता ने बच्चे को कनाडा वापस लाने की मांग की, जहां उसका पूरा पालन-पोषण हुआ है और जिसके लिए कनाडाई फैमिली कोर्ट का आदेश भी था।
जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने कहा,
“हैबियस कॉर्पस केवल विदेशी अदालत के आदेश को लागू करने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसकी असाधारण शक्ति केवल उन्हीं मामलों में इस्तेमाल की जा सकती है, जहां बच्चे की कस्टडी अवैध हो और कानून द्वारा उपलब्ध साधन अनुपलब्ध या अप्रभावी हों।”
पिता ने यह भी बताया कि उसने कई बार परिवार को बचाने की कोशिश की लेकिन मां ने उसे अपनी बेटी के साथ रहने के कानूनी अधिकार से लगातार वंचित रखा।
पत्नी ने इस याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति जताई, जिसका हवाला उन्होंने विश्नु गुप्ता बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में दिया। उस मामले में अमेरिका में रहने वाले पिता की हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज किया गया, क्योंकि उसे CPC की धारा 13 और 14 के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं।
हालांकि खंडपीठ ने पत्नी की आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि विश्नु गुप्ता मामले में हैबियस कॉर्पस के दायरे पर विचार किया गया और हाईकोर्ट के आदेश में इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत लागू किया गया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे की हिरासत बदलने की याचिका पर निर्णय करते समय सबसे महत्वपूर्ण विचार बच्चे का कल्याण होगा।
अंततः मामला आगे की सुनवाई के लिए 10 अक्टूबर, 2025 को सूचीबद्ध किया गया।