सीट छोड़ने के लिए लगे 30 लाख रुपये के जुर्माने को चुनौती देने वाले मेडिकल स्टूडेंट को राहत, हाईकोर्ट ने मूल दस्तावेज़ जारी करने का निर्देश दिया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट को मूल दस्तावेज़ जारी करने की अनुमति दे दी है, जिसने उस मेडिकल कॉलेज द्वारा सीट छोड़ने के लिए 30 लाख रुपये जुर्माने के रूप में लगाए जाने को चुनौती दी, जहां उसे एमडी (फिजियोलॉजी) कोर्स में एडमिशन दिया गया था।
यूनाइटेड किंगडम के लिवरपूल यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने का प्रस्ताव मिलने के बाद स्टूडेंट ने कोर्स से हटने की मांग की थी लेकिन बांड की शर्त के कारण उसे अपने मूल दस्तावेज़ प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ा।
स्टूडेंट की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने निर्देश दिया,
"एक अंतरिम उपाय के रूप में एक हलफनामा या वचनबद्धता प्रस्तुत करने के अधीन कि संबंधित कार्यवाही के परिणाम के अधीन याचिकाकर्ता इस न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि यदि कोई हो, जमा करेगा और याचिकाकर्ता के मूल दस्तावेज़ प्रतिवादी संख्या 3 द्वारा याचिकाकर्ता को तत्काल 02/09/2025 से पहले उचित पावती पर जारी किए जाएंगे।"
याचिकाकर्ता को अखिल भारतीय कोटे के अंतर्गत शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय, शिवपुरी में एमडी (शरीरक्रिया विज्ञान) में सीट आवंटित की गई थी। उसने 25 फ़रवरी को अपने मूल दस्तावेज़ मेडिकल कॉलेज में जमा कर दिए।
इसके बाद उसे यूनाइटेड किंगडम के लिवरपूल यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने का अवसर मिला और उसने एमडी कोर्स छोड़ने का निर्णय लिया। हालांकि, उसने बांड के माध्यम से वचनबद्धता प्रस्तुत की थी। इसमें कहा गया था कि यदि वह कॉलेज छोड़ता है तो उसे 30 लाख रुपये जमा करने होंगे।
कॉलेज ने राशि जमा करने की मांग की, जिसके विरुद्ध उसने हाईकोर्ट का रुख किया। उसने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के नियम 15(1)(खा) के प्रावधानों को चुनौती दी। चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियम 2015, जो सीट छोड़ने के बांड की शर्तों को नियंत्रित करता है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह नीति मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करती है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सीट छोड़ने की नीति पर पहले ही चिंता व्यक्त की थी और राज्यों से इसकी समीक्षा करने का आग्रह किया था।
यह भी तर्क दिया गया कि ऐसी कठोर शर्तों के कारण स्टूडेंट को अनावश्यक कठिनाई होती है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर मानसिक तनाव और चरम मामलों में आत्महत्याएं होती हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी 10 जनवरी, 2024 के एक पत्र का भी हवाला दिया गया, जिसमें इस नीति की समीक्षा करने की सलाह दी गई थी।
राज्य और मेडिकल कॉलेज की ओर से पेश हुए वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। यह तर्क दिया गया कि यदि कोई स्टूडेंट बीच में ही सीट छोड़ देता है तो सरकारी खजाने को नुकसान होता है, क्योंकि सीट खाली रहती है और शैक्षणिक वर्ष के मध्य में उसे भरा नहीं जा सकता।
न्यायालय ने संबंधित कार्यवाही के परिणाम के अधीन एक अंतरिम उपाय के रूप में कॉलेज को याचिकाकर्ता के दस्तावेज़ जारी करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने प्रतिवादियों को अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए दस दिन का समय भी दिया।
केस टाइटल: डॉ. उमेश नागर बनाम मध्य प्रदेश राज्य