9 महीने की गर्भवती रेप पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से एमपी हाईकोर्ट का इनकार, जन्म के 15 दिन बाद बच्चे को CWC को सौंपने का निर्देश
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रेप पीड़िता की 9 माह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार किया। कोर्ट ने यह देखते हुए फैसला सुनाया कि भ्रूण जीवित स्थिति में है और इस अवस्था में गर्भपात करने से पीड़िता के जीवन को खतरा हो सकता है।
कोर्ट ने साथ ही यह निर्देश भी दिया कि बच्चे के जन्म के 15 दिनों के भीतर बाल कल्याण समिति (CWC) उसकी कस्टडी ले ले और बच्चे के पालन-पोषण के लिए हर देखभाल और सावधानी बरते।
जस्टिस विशाल मिश्रा की पीठ ने अवलोकन किया,
"गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। फिर यह व्यवहार्य भी नहीं होगा, क्योंकि भ्रूण की आयु अब लगभग 9 महीने है। यह वस्तुतः जीवित स्थिति में है और इससे पीड़िता के जीवन को खतरा है। मेडिकल बोर्ड सतना द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट के साथ-साथ पीड़िता और उसके पिता के बयानों को देखते हुए यह न्यायालय पीड़िता और उसके पिता द्वारा दिखाई गई सहमति और इच्छा के आधार पर इस रिट याचिका का निपटारा करना उचित समझता है।"
यह स्वतः संज्ञान मामला 29 सितंबर, 2025 को रजिस्ट्रार जनरल को भेजे गए एक पत्र के बाद शुरू किया गया। हाईकोर्ट द्वारा इन रेफरेंस मामले में जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए इस मामले को पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। पीड़िता नाबालिग थी जब उसका यौन उत्पीड़न हुआ और मेडिकल जांच के दौरान वह गर्भवती पाई गई।
बाल कल्याण समिति (CWC) की रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता और उसके पिता ने अपने बयान में कहा कि चूंकि भ्रूण 36 सप्ताह (लगभग 9 माह) का हो चुका है, इसलिए वे गर्भावस्था को समाप्त नहीं करना चाहते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो वे उसे अपने पास नहीं रखना चाहते हैं। उसे राज्य सरकार को सौंपने के लिए सहमत हैं।
कोर्ट ने पाया,
"उपरोक्त से स्पष्ट है कि पीड़िता और उसके पिता गर्भावस्था जारी रखना चाहते हैं, क्योंकि पीड़िता के जीवन को खतरा है लेकिन वे बच्चे को यदि वह जीवित पैदा होता है तो अपने पास नहीं रखना चाहते।"
कोर्ट ने गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं देने का फैसला करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 'ए (मदर ऑफ एक्स) बनाम महाराष्ट्र राज्य' मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया। उस फैसले में यह माना गया कि प्रजनन स्वायत्तता और गर्भावस्था को समाप्त करने के निर्णयों में गर्भवती व्यक्ति की सहमति सर्वोपरि है।
पीड़िता और उसके पिता के बयानों का संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि CWC सतना बच्चे के जन्म के 15 दिनों के बाद उसकी कस्टडी लेगी।
कोर्ट ने आगे निर्देश दिया,
"बच्चा जन्म की तारीख से 15 दिनों तक मां/पीड़िता के साथ रहेगा। CWC सतना को कानून के अनुसार बच्चे को किसी भी इच्छुक परिवार को गोद देने या राज्य सरकार को सौंपने की स्वतंत्रता होगी।"