एमपी हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक डॉक्टर के खिलाफ स्वास्थ्य अधिकारियों के पक्ष में दिया फैसला

Update: 2025-09-30 08:27 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक डॉक्टर द्वारा दायर की गई अपील खारिज की। डॉक्टर ने उन स्वास्थ्य अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने की मांग की थी, जिन्होंने उज्जैन में उनके क्लिनिक की तलाशी ली थी। कोर्ट ने कहा कि यह शिकायत अधिकारियों को परेशान करने का एक प्रयास मात्र है।

चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस पवन कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते समय सुरक्षा देना आवश्यक है। इसलिए सिंगल बेंच के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

मामला

एक BAMS डॉक्टर और उनकी पत्नी, जो पिछले लगभग 20 वर्षों से उज्जैन में एक अस्पताल चला रहे हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि मई, 2011 में तीन अधिकारियों ने उनके क्लिनिक में अनाधिकृत तलाशी ली थी। हालांकि निरीक्षण टीम ने पाया कि वे मरीज को IV ड्रिप और इंजेक्शन दे रहे थे और उनके पास एलोपैथिक दवाइयां और इंजेक्शन बड़ी मात्रा में मौजूद थे।

इसके बाद क्लिनिक को सील कर दिया गया और डॉक्टर दंपति को सीएमएचओ से अनुमति लेने की शर्त पर आयुर्वेद पद्धति से ही इलाज जारी रखने का निर्देश दिया गया।

तीन साल बाद डॉक्टर ने निरीक्षण टीम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए सरकारी मंजूरी को अनिवार्य माना। डॉक्टर ने राज्य सरकार से मंजूरी मांगी, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया। डॉक्टर ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सिंगल बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी।

सीनियर वकील ने डॉक्टर की तरफ से यह तर्क दिया कि निरीक्षण टीम बिना किसी कानूनी अधिकार के क्लिनिक में घुसी थी। हालांकि खंडपीठ ने पाया कि डॉक्टर ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वे BAMS डॉक्टर होने के बावजूद मरीजों को एलोपैथिक दवाइयां दे रहे थे।

कोर्ट ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी यानी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के सचिव ने पुष्टि की थी कि निर्देश स्वास्थ्य सेवा निदेशालय से आए और टीम का गठन SDO (राजस्व) द्वारा किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि निरीक्षण टीम की डॉक्टर से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि डॉक्टर की शिकायत केवल उन लोक अधिकारियों को परेशान करने का प्रयास थी, जो अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे। इस प्रकार अदालत ने CrPC की धारा 197 के तहत लोक सेवकों को मिलने वाली सुरक्षा पर जोर देते हुए अपील खारिज की।

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