बाल कोर्ट का उद्देश्य केवल उन मामलों की सुनवाई करना नहीं, जहां बाल अधिकारों का उल्लंघन किया गया बल्कि जुवेनाइल पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाना भी है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
हाल ही में दिए गए एक फैसले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल न्यायालय केवल उन मामलों की सुनवाई के लिए नहीं है, जहां बाल अधिकारों का उल्लंघन किया गया और पीड़ित बच्चे हैं बल्कि 16-18 वर्ष की आयु के उन किशोरों के लिए भी है जिन पर जघन्य अपराध करने का आरोप है।
जस्टिस विशाल धगत की एकल पीठ ने कहा,
"पहली नज़र में बाल कोर्ट ऐसा न्यायालय प्रतीत होता है, जो उन मामलों की सुनवाई कर रहा है, जहां बाल अधिकारों का उल्लंघन किया गया और पीड़ित बच्चे हैं। लेकिन बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 25 को किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के साथ पढ़ा जाना चाहिए। किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 15 और 18 में यह निर्धारित किया गया कि किशोर न्याय बोर्ड (JJB) इस बात की जांच करेगा कि बच्चा कानून का उल्लंघन कर रहा है या नहीं अगर किशोर न्याय बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि किशोर की उम्र 16-18 साल के बीच है। उसने जघन्य अपराध किया है तो उसके मामले को सुनवाई के लिए बाल कोर्ट में ट्रांसफर किया जाना चाहिए।”
वर्तमान मामला बाल न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 102 के तहत आवेदक द्वारा दायर एक आपराधिक पुनर्विचार है।
ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया कि आवेदक घटना के समय नाबालिग था तथा उसकी आयु 18 वर्ष से कम थी। इसलिए उस पर बाल न्यायालय के बजाय किशोर न्याय बोर्ड द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिए था।
उक्त आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। आवेदक के वकील ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 का हवाला दिया।
प्रस्तुत किया गया कि उक्त अधिनियम के अध्याय-V, धारा 25 के अनुसार बच्चों के विरुद्ध अपराधों या बाल अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए बाल न्यायालय का गठन किया गया है।
आगे प्रस्तुत किया गया कि बाल न्यायालय उन अपराधों की सुनवाई करता है जिनमें पीड़ित बच्चे होते हैं लेकिन उन मामलों की सुनवाई नहीं करता, जहां अपराध किशोर द्वारा किया गया हो। इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश दोषपूर्ण है तथा इसे रद्द किया जाना चाहिए।
राज्य की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाई जा सकती।
कोर्ट ने कहा कि आवेदक के वकील बाल न्यायालय के अर्थ को समझने में असमर्थ हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 25 को किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के साथ पढ़ा जाना चाहिए। जेजे अधिनियम की धारा 2(20) में बाल न्यायालय को परिभाषित किया गया है।
इसके अलावा, अधिनियम की धारा 15 और 18 में यह निर्धारित किया गया है कि किशोर न्याय बोर्ड यह जांच करेगा कि क्या बालक कानून का उल्लंघन कर रहा है या नहीं और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके यह निर्धारित करेगा कि किशोर द्वारा किया गया अपराध जघन्य प्रकृति का है या नहीं। यदि वह 16-18 वर्ष के बीच का है तो क्या उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
इसके बादयदि किशोर न्याय बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि किशोर की आयु 16-18 वर्ष के बीच है। उसने जघन्य अपराध किया है तो उसके मामले को सुनवाई के लिए बाल न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा जांच के बाद मामले को बाल न्यायालय में स्थानांतरित करने में ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई है।
इस प्रकार, आपराधिक पुनर्विचार को खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल: मुबारक खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 4922/2024