कॉलेज की संबद्धता के लिए याचिका दायर करने का स्टूडेंट्स के पास कोई अधिकार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लॉ कॉलेज के मान्यता न मांगने पर आश्चर्य व्यक्त किया

Update: 2024-12-14 07:44 GMT

कॉलेज की मान्यता प्रदान करने के संबंध में याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने शुक्रवार (13 दिसंबर) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि स्टूडेंट्स के पास कॉलेज की संबद्धता मांगने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि कॉलेज मान्यता मांगने के लिए न्यायालय के समक्ष उपस्थित क्यों नहीं हुआ।

सुनवाई की अंतिम तिथि यानी 13 नवंबर को प्रतिवादी संख्या 1 (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) और प्रतिवादी संख्या 2 (म.प्र. राज्य बार काउंसिल) के वकीलों ने अंतिम रियायत के रूप में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था।

जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ के समक्ष मामला सूचीबद्ध किया गया तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की ओर से पेश हुए वकील ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।

इस पर कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा,

“पिछली बार भी यही स्थिति थी।”

हालांकि वकील ने कहा,

“उन्होंने कहा कि इसे समिति के समक्ष रखा जाएगा और फिर परिणाम अध्यक्ष के समक्ष रखा जाएगा।”

कोर्ट ने पूछा कि BCI की कानूनी शिक्षा समिति (LEC) की बैठक किस तारीख को होगी और क्या यह पहले ही हो चुकी है।

इस पर वकील ने जवाब दिया,

“मुझे इस बारे में और जानकारी नहीं दी गई कि क्या हुआ है। मैं जल्द ही इसका पता लगाऊंगा।”

इस बीच याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए BCI द्वारा मांगे गए समय पर आपत्ति जताते हुए कहा,

“हमें इस पर आपत्ति है। पिछले तीन महीनों से प्रतिवादी समय ले रहा है।”

हालांकि हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा,

“सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्टूडेंट के पास कॉलेज से संबद्धता मांगने का कोई अधिकार नहीं है।”

वकील ने जवाब दिया,

यह सच है।” “अगर यह सच है तो क्या बचा है? अदालत ने मौखिक रूप से पूछा, "आपने ऐसे कॉलेज में एडमिशन क्यों लिया, जिसकी कोई मान्यता नहीं थी?"

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह सरकारी कॉलेज था और स्टूडेंट्स की कोई गलती नहीं थी।

अदालत ने कहा,

"बार काउंसिल अपनी सूची में मान्यता प्राप्त कॉलेज को प्रदर्शित करती है। वह अपनी सूची में गैर-मान्यता प्राप्त कॉलेजों को प्रदर्शित नहीं कर सकती।"

हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बार काउंसिल की वेबसाइट पर 2012 से सूची अपडेट नहीं की गई है।

इसके बाद अदालत ने अपना आदेश सुनाया,

"BCI की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि विषय कॉलेज की मान्यता का मुद्दा बार काउंसिल ऑफ इंडिया की कानूनी शिक्षा समिति (एलईसी) के समक्ष रखा गया। वह बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा लिए गए निर्णय के संबंध में निर्देश प्राप्त करने के लिए कुछ समय की प्रार्थना करते हैं।"

इस स्तर पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,

"महाराज, सैकड़ों स्टूडेंट्स का भविष्य दांव पर है।"

अदालत ने जवाब दिया,

"हां, अगर उन्होंने कोई निर्णय लिया है तो आपको इसका लाभ मिलेगा।"

याचिकाकर्ता के वकील ने जनवरी के पहले सप्ताह में सुनवाई की तारीख मांगी और कहा,

“पिछले आदेश में भी BCI को अंतिम छूट दी गई थी। न ही उनका हलफनामा रिकॉर्ड में है।

इस पर कोर्ट ने कहा,

पिछली बार वे हलफनामा चाहते थे, अब वे कह रहे हैं कि इसे कानूनी शिक्षा समिति के समक्ष रखा गया। कानूनी शिक्षा समिति का निर्णय हमारे समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।”

हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार निरीक्षण के आवेदन के 50 दिनों के भीतर उन्हें निर्णय लेना होता है।

इसके बाद कोर्ट ने मौखिक रूप से पूछा,

“कॉलेज हमारे समक्ष क्यों नहीं है? अगर कोई कमी है, मान लीजिए कि उन्होंने निरीक्षण के लिए शुल्क का भुगतान नहीं किया है तो निरीक्षण के लिए शुल्क कौन देगा?”

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि दस्तावेज रिकॉर्ड में उपलब्ध हैं और उन्हें याचिका में संलग्न किया गया।

इसके बाद कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा,

“आप देखिए यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कॉलेज मान्यता नहीं चाहता है।”

हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्टूडेंट्स कॉलेज की निष्क्रियता से भी व्यथित हैं। उन्होंने कहा कि कॉलेज ने स्टूडेंट्स को यह नहीं बताया कि कॉलेज बार काउंसिल ऑफ इंडिया से संबद्ध नहीं है।

इसके बाद अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"कॉलेज में जाओ कॉलेज के प्रबंधन को आगे आने के लिए कहो। इसलिए अगर निरीक्षण में कोई कमी है तो उसे कौन सुधारेगा? फिर कृपया कॉलेज पर मुकदमा चलाओ"।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वे यहां मौद्रिक क्षति के लिए नहीं आए हैं, बल्कि कॉलेज के स्टूडेंट्स के भविष्य के लिए अदालत के सामने आए हैं।

हालांकि अदालत ने मौखिक रूप से कहा,

"आप देखते हैं, वे मान्यता नहीं चाहते हैं। आप कॉलेज को मान्यता देने पर जोर दे रहे हैं"।

याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि स्टूडेंट्स तीन साल से वहां पढ़ रहे थे।

इस स्तर पर अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"आपने एक गैर-मान्यता प्राप्त कॉलेज में 100 साल तक अध्ययन किया हो सकता है। आपको नामांकित नहीं किया जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको वेबसाइट से जांच करनी चाहिए थी कि यह मान्यता प्राप्त है या नहीं।"

वकील ने जवाब दिया,

“वेबसाइट में उन्होंने दिखाया कि उनकी संबद्धता अभी भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ है।”

इस पर अदालत ने कहा,

“तो, यह उनकी गलती है।”

वकील ने कहा,

“और लॉर्डशिप, यहां तक कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया भी यह नहीं कहता है कि संबद्धता रद्द कर दी गई है।”

इस स्तर पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा,

“आप कॉलेज के आंतरिक दस्तावेजों का उपयोग कर रहे हैं। ये प्रायोजित याचिकाएँ हैं।”

याचिकाकर्ता के वकील ने हालांकि कहा कि ऐसा नहीं है और “बार काउंसिल कह सकती है कि संबद्धता रद्द कर दी गई थी”।

याचिकाकर्ताओं से सवाल करते हुए कि उन्हें आंतरिक दस्तावेजों तक कैसे पहुँच मिली।

अदालत ने मौखिक रूप से कहा,

“यदि यह रद्द नहीं किया गया तो आप हमारे सामने क्यों हैं? ये आंतरिक दस्तावेज आपके पास कैसे आए? ये सभी दस्तावेज कॉलेज द्वारा आपको इस याचिका को दायर करने के लिए प्रदान किए गए होंगे। अब आप जोर दे रहे हैं कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया को समय नहीं दिया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया है। प्रक्रिया में समय लगेगा।

संबद्धता कॉलेज की होगी। फिर दूसरा सवाल यह उठेगा कि उन छात्रों का क्या होगा, जो उस अवधि के दौरान पहले से ही पढ़ रहे थे जब संबद्धता नहीं थी। इस स्तर पर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि निरीक्षण आवेदन भी रिकॉर्ड पर था।

इस पर अदालत ने पूछा,

"इसे किसने प्रस्तुत किया?"

याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि यह कॉलेज था।

हालांकि अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"आप सब कुछ प्रस्तुत कर रहे हैं। आप कॉलेज नहीं हैं। कार्रवाई करना कॉलेज का काम है।"

इस स्तर पर एक अन्य वकील ने तर्क दिया,

"हम संबंधित याचिका में हैं। मैं बार काउंसिल की ओर से पेश हो रहा हूं। मुझे मौखिक निर्देश मिले हैं कि इसे समिति के समक्ष रखा गया है और आवेदन में कुछ कमियां हैं।"

अदालत ने मौखिक रूप से कहा,

"वे BCI को समय देने का विरोध कर रहे हैं।"

इस बीच BCI के वकील ने कहा कि परिणाम इंटरनेट पर डाला जाएगा और कॉलेजों के साथ-साथ राज्य बार काउंसिल को भी इसकी जानकारी दी जाएगी। इस स्तर पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि राज्य को भी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाए।

हालांकि अदालत ने कहा,

"अगर बार काउंसिल कहती है कि कोई कमी है तो हलफनामा क्या करेगा? कॉलेज को कमी को दूर करना होगा। उन्हें (बीसीआई) जवाब दाखिल करने दें, हम देखेंगे।"

मामला अब 20 जनवरी, 2025 को सूचीबद्ध है।

केस टाइटल: अंकित शुक्ला और अन्य बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य

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