केवल कभी-कभार होने वाला दुर्व्यवहार या उत्पीड़न आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-08-21 11:32 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ग्वालियर ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत लगाए गए आरोप खारिज करते हुए कहा कि केवल कभी-कभार होने वाला उत्पीड़न या दुर्व्यवहार आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है।

जस्टिस संजीव एस. कलगांवकर की एकल पीठ ने कहा कि उकसाने का अपराध बनने के लिए उकसाने या उकसाने का स्पष्ट और जानबूझकर किया गया कार्य होना चाहिए।

अदालत ने गंगुला मोहन रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, अमलेंदु पाल @ झंटू बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, हुकुम सिंह यादव बनाम मध्य प्रदेश राज्य सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा किया, जिसने दोहराया कि आरोपी की हरकतें ऐसी होनी चाहिए कि पीड़ित को अपनी जान लेने के लिए मजबूर होना पड़े और उसके पास कोई दूसरा विकल्प न बचे।

“आरोपी व्यक्ति का प्रत्यक्ष कृत्य ऐसी प्रकृति का होना चाहिए कि पीड़ित के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प न हो। यह मानते हुए भी कि याचिकाकर्ता ने मृतक के साथ दुर्व्यवहार किया यह आचरण उकसाने के दायरे में नहीं आता।”

अंततः न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि खैरू के खिलाफ लगाए गए आरोप आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए अपर्याप्त हैं।

न्यायालय ने कहा,

“केवल कभी-कभार उत्पीड़न या दुर्व्यवहार आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है।”

मामले की पृष्ठभूमि

मामले के तथ्यों में वंदना रावत की मौत शामिल है, जो 18 जून, 2023 को अपने घर में लटकी हुई पाई गई थी। वंदना के रिश्तेदारों ने दावा किया कि वह अपने पति विक्रम रावत और उसके चचेरे भाई, याचिकाकर्ता खैरू रावत द्वारा उत्पीड़न के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हुई। शिवपुरी के सत्र न्यायालय द्वारा खैरू के विरुद्ध धारा 306 के साथ धारा 34 आईपीसी के तहत आरोप तय किए गए।

याचिकाकर्ता ने आरोपों को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि जानबूझकर उकसाने या आत्महत्या के लिए सीधे तौर पर प्रेरित करने वाले किसी भी कार्य का कोई सबूत नहीं है। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता 18 किलोमीटर दूर रहने वाला दूर का रिश्तेदार था और कभी-कभार ही मृतका और उसके परिवार से मिलने आता था।

जस्टिस कलगांवकर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि धारा 306 आईपीसी के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की मुख्य आवश्यकता स्पष्ट मेन्स रीया या आत्महत्या के लिए उकसाने का इरादा है।

न्यायालय ने नोट किया,

"ऐसा कोई सकारात्मक या प्रत्यक्ष आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता ने वंदना की मृत्यु का इरादा किया था या उसने उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाया, आग्रह किया, उकसाया, उकसाया या प्रोत्साहित किया। आवेदक के विरुद्ध लगाए गए सामान्य और सर्वव्यापी आरोप तुच्छ प्रकृति के हैं, जो आम तौर पर हर घर में होते हैं।"

इस प्रकार हाईकोर्ट ने खैरू के विरुद्ध धारा 306 के साथ धारा 34 आईपीसी के तहत लगाए गए आरोप खारिज कर दिए और उसे मामले से मुक्त कर दिया।

केस टाइटल- खैरू @ सतेंद्र सिंह रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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