वक्फ एक्ट के लागू होने से पहले शुरू किए गए लंबित संपत्ति मुकदमों पर वक्फ ट्रिब्यूनल विचार नहीं कर सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-02 11:34 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि वक्फ ट्रिब्यूनल के पास विवादित संपत्ति के स्वामित्व की प्रकृति के संबंध में सिविल न्यायालयों में लंबित मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जो वक्फ (मध्य प्रदेश संशोधन) अधिनियम1994 के लागू होने से पहले शुरू किए गए।

जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया,

“धारा 7 की उपधारा (5) के मद्देनजर अधिनियम उन लंबित मुकदमों या कार्यवाही या अपील या पुनर्विचार पर लागू नहीं होगा, जो 01.01.1996 से पहले शुरू हुए हैं, अर्थात वक्फ अधिनियम, 1995 के लागू होने से पहले नही होगा।”

वक्फ (म.प्र. संशोधन) अधिनियम 1994 (अधिनियम सं. 1, 1995) 1996 में लागू हुआ। उक्त अधिनियम की धारा 7(5) में कहा गया कि धारा 6(1) के अंतर्गत आने वाले विषयों पर अधिनियम के प्रारंभ से पहले लंबित कार्यवाही के संबंध में न्यायाधिकरण के पास अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।

न्यायालय ने पाया कि मुकदमे का विषय वही था, जो धारा 6(1) में निर्दिष्ट हैयानी संपत्ति वक्फ संपत्ति थी या नहीं। इसलिए न्यायालय ने यह अनुमान लगाया कि ट्रिब्यूनल ट्रांसफर मुकदमे का फैसला नहीं कर सकता, क्योंकि वक्फ अधिनियम 1995 उक्त 'लंबित' कार्यवाही में लागू नहीं था।

न्यायालय ने सिविल पुनर्विचार में उत्तर दिए जाने वाले विवादास्पद मुद्दे को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 7(5) के साथ 85 के दायरे में न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र की सीमा के रूप में तैयार किया तथा उक्त मुकदमे के सिविल न्यायालय में लंबित रहने, जिसे बाद में न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिया गया, के रूप में परिभाषित किया।

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हालांकि यह सच है कि धारा 85 वक्फ संपत्ति से संबंधित मामलों में सिविल न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर विशिष्ट प्रतिबंध लगाती है, लेकिन यह केवल उन विवादों पर पूरी तरह से लागू होती है, जो वक्फ अधिनियम 1995 के लागू होने के बाद उत्पन्न होते हैं।

अदालत ने कहा,

"यह भी विवाद का विषय नहीं है कि न्यायाधिकरण ने स्वयं यह माना कि मुकदमे में शामिल मूल विवाद यह था कि मुकदमे की संपत्ति वक्फ से संबंधित है या नहीं लेकिन न्यायाधिकरण ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 7 की उपधारा (5) के प्रभाव पर विचार नहीं किया है।"

मामले की पृष्ठभूमि

सिविल पुनर्विचार में आवेदकों-प्रतिवादियों ने राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल भोपाल द्वारा 2003 में पारित आदेश को चुनौती दी। 1993 में प्रतिवादी वक्फ बोर्ड ने आवेदकों के खिलाफ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश भोपाल के समक्ष मामला दर्ज किया। मांगी गई राहतों में भूमि के एक टुकड़े को कब्रिस्तान घोषित करना शामिल था जो कथित रूप से वक्फ संपत्ति थी और उसका कब्जा था। बोर्ड द्वारा दायर वाद में आवेदकों को विवादित भूमि पर कोई भी निर्माण कार्य करने तथा अवैध कब्जे के लिए मुआवजा प्राप्त करने से रोकने का भी इरादा था।

बोर्ड के अनुसार विवादित संपत्ति भोपाल के तत्कालीन शासक द्वारा दान की गई तथा इसे मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप में चिन्हित किया गया। कब्रिस्तान मौफी भूमि थी, जिसकी देखभाल फकीर करते थे जैसा कि पुराने राजस्व अभिलेखों में उल्लेखित है मूल वाद में प्रतिवादियों द्वारा इसका दावा किया गया था।

अपर जिला न्यायाधीश के समक्ष वादी  के लंबित रहने के दौरान, वक्फ (म.प्र. संशोधन) अधिनियम, 1994 लागू हुआ। संशोधन की धारा 6 के अनुसार वक्फ अधिनियम 1954 में धारा 55जी जोड़ी गई। धारा 55जी में कहा गया कि किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष कार्यवाही न्यायनिर्णयन के लिए वक्फ न्यायाधिकरण को हस्तांतरित की जाएगी। परिणामस्वरूप जिला न्यायालय के समक्ष सिविल वाद भी वक्फ टट्रिब्यूनल भोपाल को ट्रांसफर हो गया।

ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि वक्फ अधिनियम की धारा 6 और 7 तथा मध्य प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1960 की धारा 82 के आलोक में यह मुकदमा विचारणीय नहीं होगा।

आवेदकों के वकील ने सरदार खान एवं अन्य बनाम सैयद नजमुल हसन (सेठ) एवं अन्य (2007) 10 एससीसी 727 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधान लंबित कार्यवाही या 1.1.1996 को इसके लागू होने से पहले शुरू हुए मुकदमों पर लागू नहीं होंगे।

बोर्ड के वकील ने तर्क दिया कि मुकदमे का विषय धारा 6(1) में दिए गए अपवाद के अंतर्गत नहीं आएगा, इसलिए कार्यवाही का ट्रांसफर वैध था और अधिनियम की धारा 7 इस मामले पर पूरी तरह लागू है।

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सरदार खान एवं अन्य के मामले में दिया गया निर्णय वर्तमान मामले में भी लागू होगा तथा अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर आवेदकों द्वारा प्रस्तुत सिविल पुनर्विचार को अनुमति दी।

केस टाइटल- रुबाब बाई एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड एवं अन्य।

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